Post Gupta Period MCQ सभी छात्रों तथा प्रतियोगीता परीक्षा के उम्मीदवारों के लिए आवश्यक है। Post Gupta Period MCQ गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद हुए राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों को समझने में मदद करते हैं। आइए गुप्तोत्तर काल काल से सम्बंधित प्रश्नों को उनके सही उत्तरों के साथ हल करें।
गुप्तोत्तर काल में शक्तिशाली गुप्त साम्राज्य का पतन और विभिन्न क्षेत्रीय साम्राज्यों का उदय हुआ। आधुनिक भारतीय समाज, शासन व्यवस्था और संस्कृति की नींव को अच्छे से समझने के लिए इस युग का अध्ययन बहुत जरूरी है।
Post Gupta Period MCQ | गुप्तोत्तर काल से सम्बंधित प्रश्न
(Q) किसके शासनकाल में ह्वेनसांग ने भारत यात्रा की थी?
(a) चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य
(b) समुद्रगुप्त
(c) चन्द्रगुप्त प्रथम
(d) हर्षवर्धन
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उत्तर ➲ (d) हर्षवर्धन
- ह्वेनसांग हर्षवर्धन के शासन काल में भारत (629-645 ई.) आया था। वह भारत में 16 वर्षों तक रहा तथा बिहार के नालंदा विश्वविद्यालय में शिक्षा ग्रहण किया। ह्वेनसांग का भ्रमण वृतान्त सि- यू-की नाम से प्रसिद्ध है।
- चीन से आने वाले अन्य प्रमुख यात्री फाहियान, चन्द्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य) के समय में, शुंगयुन व इत्सिंग सातवीं शताब्दी में भारत आये थे।
(Q) अद्वैत वेदांत के अनुसार, मुक्ति प्राप्त करने का उपाय क्या है?
(a) ज्ञान
(b) कर्म
(c) भक्ति
(d) योग
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उत्तर ➲ (a) ज्ञान
- अद्वैत वेदांत के अनुसार ज्ञान मार्ग ही मुक्ति का साधन है। ज्ञान के माध्यम से ही मनुष्य मुक्ति प्राप्त करने में सक्षम हो सकता है।
(Q) प्रसिद्ध दिलवाड़ा मंदिर कहाँ स्थित है?
(a) राजस्थान में
(b) उत्तर प्रदेश में
(c) मध्य प्रदेश में
(d) महाराष्ट्र में
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उत्तर ➲ (a) राजस्थान में
- दिलवाड़ा का प्रसिद्ध जैन मन्दिर राजस्थान के सिरोही में माउण्ट आबू पर स्थित है। इसका निर्माण 11वीं से 13वीं शताब्दी के बीच की गई थी।
- यह मन्दिर पाँच मन्दिरों का समूह है जो जैन धर्म के पाँच अलग-अलग तीर्थंकरों को समर्पित है।
(Q) चीनी लेखक भारत का उल्लेख किस नाम से करते थे?
(a) फो-क्वो की
(b) यिन-तु
(c) सि-यू की
(d) सिकिया-पोनो
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उत्तर ➲ (b) यिन-तु
- प्राचीन काल में भारत में आए चीनी लेखकों ने भारत को यिन तु (Yin – Tu) तथा थिआन तु (Thian-tu) कहा है।
(Q) योग के आविष्कारक किसे माना जाता है?
(a) आर्यभट
(b) चरक
(c) पतंजलि
(d) रामदेव
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उत्तर ➲ (c) पतंजलि
- पतंजलि का ‘योग दर्शन’ योग संबंधी सिद्धांतों का व्यवस्थित ग्रंथ है। भारतीय दर्शन में योग को बहुत महत्व दिया गया है।
- बौद्ध, जैन तथा अन्य भारतीय मतों में योग को अपनाया गया है।
(Q) निम्नलिखित में से कौन-सा ‘अष्टांग योग’ का हिस्सा नहीं है?
(a) अनुस्मृति
(b) प्रत्याहार
(c) ध्यान
(d) धारण
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उत्तर ➲ (a) अनुस्मृति
- योग सिद्धांत में आठ अंगों यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान तथा समाधि का वर्णन किया गया है। यह स्पष्ट है कि ‘अनुस्मृति’ का इसमें समावेश नहीं है।
(Q) मौखरि शासकों की राजधानी क्या थी?
(a) थानेश्वर
(b) कन्नौज
(c) पुरूषपुर
(d) इनमें से कोई नहीं
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उत्तर ➲ (b) कन्नौज
(Q) काकतीय राज्य के दौरान निम्नलिखित में से कौन सा एक महत्वपूर्ण समुद्री बंदरगाह था?
(a) काकिनाडा
(b) मोटुपल्ली
(c) मछलीपटनम (मसुलीपटनम)
(d) नेल्लुरु
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उत्तर ➲ (b) मोटुपल्ली
- ऐतिहासिक ग्रंथों के अनुसार वर्तमान कृष्ण जिला में एक समुद्री पत्तन था जो मोटुपल्ली के नाम से जाना जाता था तथा जो गणपति राज्य का भाग था।
- यह काकतीय शासकों के लिए अति महत्त्वपूर्ण था। 1289-93 के मध्य भारत के दौरे पर रहने वाला मार्कोपोलो ने मोटुपल्ली के रूप एक राज्य का वर्णन किया था, जिसकी शासिका रुद्रमा देवी थी।
(Q) निम्न में से कौन-सा दर्शन वेदों को शाश्वत सत्य मानता है?
(a) सांख्य
(b) वैशेषिक
(c) मीमांसा
(d) न्याय
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उत्तर ➲ (c) मीमांसा
- मीमांसा द्वारा वेदों को शाश्वत बताया गया है। वेद के कर्मकांड का विश्लेषण पूर्व मीमांसा में तथा ज्ञान आदि का विवरणात्मक स्वरूप उत्तर मीमांसा में उल्लेखित है।
(Q) अद्वैत दर्शन के संस्थापक कौन हैं?
(a) शकराचार्य
(b) रामानुजाचार्य
(c) मध्वाचार्य
(d) महात्मा बुद्ध
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उत्तर ➲ (a) शकराचार्य
- अद्वैत विचारधारा के संस्थापक शंकराचार्य को माना जाता है। उनके अनुसार संसार में मात्र ब्रह्म ही सत्य है, अन्य सब मिथ्या है।
- वे गोविन्दाचार्य के शिष्य थे। उनका जन्म (788 ई.) केरल में हुआ था।
(Q) कन्नौज के मौखरि वंश के संस्थापक कौन थे?
(a) हरि वर्मा
(b) गृह वर्मा
(c) अवन्ति वर्मा
(d) आदित्य वर्मा
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उत्तर ➲ (a) हरि वर्मा
(Q) निम्नलिखित में से कौन-सा ‘वेदांत दर्शन’ से संबंधित नहीं है?
(a) शंकराचार्य
(b) अभिनव गुप्त
(c) रामानुज
(d) माधव
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उत्तर ➲ (b) अभिनव गुप्त
- शंकराचार्य, रामानुज तथा माधव ने वेदांत दर्शन के क्रमशः अद्वैतमत, विशिष्टाद्वैत तथा द्वैत मत का प्रतिपादन किया।
- वेदांत दर्शन भारतीय विचारधारा की उन्नत स्थिति को प्रकट करता हैं।
- इस दर्शन के तीन मूल आधार हैं – उपनिषद, ब्रह्मसूत्र तथा भगवद्गीता अभिनव गुप्त ( 975-1025) एक रहस्यवादी तांत्रिक तथा अलंकार शास्त्री थे।
(Q) हर्षवर्धन के शासनकाल में किस चीनी यात्री ने भारत का दौरा किया था?
(a) फाह्यान
(b) ह्वेनसांग
(c) इत्सिंग
(d) तारानाथ
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उत्तर ➲ (b) ह्वेनसांग
- चीनी यात्री ह्वेनसांग की भारत यात्रा का मुख्य उद्देश्य बौद्ध दर्शन का अध्ययन तथा महात्मा बुद्ध से संबंधित स्थलों का दर्शन करना था ।
- ह्वेनसांग के भारत आगमन के समय उत्तरी भारत में हर्षवर्धन का शासन था ।
- ह्वेनसांग द्वारा लिखित पुस्तक ‘सी-यू-की’ में यात्रा विवरण का समावेश है।
(Q) चालुक्य शासक पुलकेशिन ने हर्ष पर कब विजय प्राप्त की?
(a) 612 ई.
(b) 618 ई.
(c) 622 ई.
(d) 634 ई.
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उत्तर ➲ (d) 634 ई.
(Q) ‘सी-यू-की’ नामक यात्रा विवरण किससे संबंधित है?
(a) फाहियान
(b) अलबरूनी
(c) मेगस्थनीज
(d) ह्वेनसांग
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उत्तर ➲ (d) ह्वेनसांग
- ह्वेनसांग भारत में आकर नालंदा विश्वविद्यालय में छः वर्षों तक बौद्ध साहित्यों का अध्ययन किया। वह भारत में लगभग 16 वर्षों तक निवास किया।
- अपनी संपूर्ण यात्रा का विवरण उसने सी यू की नामक पुस्तक में प्रस्तुत की है ।
- इस पुस्तक से हमें तत्कालीन भारतीय समाज, धर्म तथा राजनीतिक व्यवस्था का विवरण प्राप्त होता है।
(Q) भीनमाल की यात्रा करने वाले चीनी यात्री का नाम क्या है?
(a) फाह्यान
(b) संगयुन
(c) ह्वेनसांग
(d) इत्सिंग
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उत्तर ➲ (c) ह्वेनसांग
(Q) गुप्तोत्तर युग में एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र कौन सा था?
(a) कन्नौज
(b) उज्जैन
(c) धार
(d) देवगिरी
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उत्तर ➲ (a) कन्नौज
- गुप्त शासन के बाद हर्ष द्वारा राजधानी का परिवर्तन किया गया।
- राजधानी थानेवर से कन्नौज लायी गई न इसलिए व्यापारिक केन्द्र के रूप में कन्नौज का तीव्र गति से विकास हुआ।
- चंद्रगुप्त द्वितीय द्वारा उज्जैन नगर को राजधानी के रूप में विकास हुआ था।
(Q) “कौसेय” शब्द का प्रयोग किसके लिए किया गया है?
(a) कपास के लिए
(b) सन के लिए
(c) रेशम के लिए
(d) ऊन के लिए
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उत्तर ➲ (c) रेशम के लिए
(Q) राजा हर्षवर्धन ने अपनी राजधानी कहाँ से कहाँ स्थानांतरित की थी?
(a) थानेसर, कन्नौज
(b) दिल्ली, देवगिरी
(c) कम्बोज, कन्नौज
(d) वालाभी, दिल्ली
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उत्तर ➲ (a) थानेसर, कन्नौज
- हर्षवर्धन (606-647 ई.) (वर्द्धन वंश) ने उत्तरी भारत में अपना एक सुदृढ साम्राज्य स्थापित किया था वह अंतिम हिन्दू सम्राट था, जिसने पंजाब छोड़कर शेष समस्त उत्तरी भारत पर राज्य किया। शशांक की मृत्यु के उपरांत वह बंगाल को जीतने में समर्थ हुआ ।
- हर्षवर्धन के शासन काल का इतिहास मगध से प्राप्त दो ताम्रपत्रों, राजतरंगिणी, चीनी यात्री ह्वेनसांग के विवरण और हर्ष एवं बाण भट्ट द्वारा रचित संस्कृत काव्य ग्रंथो में प्राप्त है।
- इसने अपनी राजधानी थानेश्वर से कन्नौज स्थानान्तरित की थी।
(Q) गुप्तोत्तर काल का एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र कौन सा था?
(a) कन्नौज
(b) उज्जैन
(c) धार
(d) देवगिरी
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उत्तर ➲ (a) कन्नौज
(Q) सम्राट हर्ष ने अपनी राजधानी थानेश्वर से किस स्थान पर स्थानांतरित की थी?
(a) प्रयाग
(b) दिल्ली
(c) कन्नौज
(d) राजगृह
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उत्तर ➲ (c) कन्नौज
(Q) निम्नलिखित में से कौन-सा ‘चार धाम’ में सम्मिलित नहीं है?
(a) पुरी
(b) द्वारिका
(c) मानसरोवर
(d) रामेश्वरम
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उत्तर ➲ (c) मानसरोवर
- बद्रीनाथ, द्वारिका, पुरी तथा रामेश्वरम को हिंदू धर्म में चार धाम के रूप में जाना जाता है।
- मानसरोवर नामक प्राकृतिक झील कैलाश पर्वत के पास स्थित है। यह लगभग 4590 मी. की ऊंचाई पर स्थित है। यह एक प्रमुख शैव तीर्थ स्थल है।
(Q) भास्कर नामक राजा द्वारा हर्षवर्धन को भेजे गए उपहारों का उल्लेख हर्षचरित में मिलता है, और वे किस क्षेत्र से संबंधित थे?
(a) मगध का हर्यक राजवंश
(b) असम का वर्मन राजवंश
(c) उत्तर भारत का नंद राजवंश
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं
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उत्तर ➲ (c) उत्तर भारत का नंद राजवंश
- कन्नौज के शासक हर्षवर्द्धन के समकालीन भास्कर वर्मन असम (कामरूप) के वर्मन वंश का अंतिम महान् शासक था।
- हर्ष और भास्करवर्मन के मैत्रीपूर्ण संबंध थे। बाणभट्ट ने अपनी रचना हर्षचरित में भास्कर वर्मन का उल्लेख किया है।
(Q) पुलकेशिन द्वितीय की हर्षवर्धन के विरुद्ध सैन्य सफलता का उल्लेख किस उत्कीर्ण लेख में किया गया है?
(a) इलाहाबाद स्तम्भ उत्कीर्ण लेख
(b) ऐहोल उत्कीर्ण लेख
(c) दामोदरपुर ताम्र-पट्टिका उत्कीर्ण लेख
(d) बिल्सड उत्कीर्ण लेख
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उत्तर ➲ (c) दामोदरपुर ताम्र-पट्टिका उत्कीर्ण लेख
- पुलकेशिन II चालुक्य राजवंश का एक महान शासक था। इन्होंने लगभग 620 ईस्वी में शासन किया था।
- इन्हें पुलकैशी नाम से भी जाना जाता था।
- पुलकेशिन द्वितीय के बारे में हमें ऐहॉल अभिलेख में उसके समकालीन कवि रविकीर्ति द्वारा लिखी गयी प्रशस्ति से जानकारी मिलती है।
- यह संस्कृत भाषा में है।
(Q) निम्नलिखित में से किसने हर्षवर्धन को पराजित किया था?
(a) कीर्तिवर्मन द्वितीय
(b) विक्रमादित्य द्वितीय
(c) पुलकेशिन प्रथम
(d) पुलकेशिन द्वितीय
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उत्तर ➲ (d) पुलकेशिन द्वितीय
- नर्मदा नदी तट पर सम्राट हर्ष के दक्षिणावर्ती अग्रगमन को पुलकेशिन द्वितीय ने रोका था।
- दोनों के बीच नर्मदा नदी के तट पर युद्ध हुआ जिसमें हर्ष को पराजय का मुँह देखना पड़ा।
(Q) “मनिमेकलाई” ग्रंथ के रचयिता कौन हैं?
(a) कोवालन
(b) सथनार
(c) इलांगो अडिगल
(d) तिरुतक्कातेवर
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उत्तर ➲ (b) सथनार
(Q) सम्राट हर्षवर्धन की जीवनी ‘हर्षचरित’ किसने लिखी?
(a) बाणभट्ट
(b) स्वामी शिवानंद
(c) वाल्मीकि
(d) रबीन्द्रनाथ टैगौर
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उत्तर ➲ (a) बाणभट्ट
- हर्षवर्धन (606 ई- 647 ई.)- हर्षवर्धन पुष्पभूति वंश का सर्वाधिक प्रतापी राजा था।
- उन्होंने अपने दरबार में कादम्बरी हर्षचरित (हर्ष के कार्य) के रययिता बाणभट्ट, सूर्यशतक के रचयिता मयूर तथा चीनी विद्वान ह्वेनसांग (सी-यू-की का रचयिता) को आश्रय प्रदान किया था।
(Q) राजा शशांक, जिनसे हर्षवर्धन ने युद्ध किया, वे किस राज्य के शासक थे?
(a) कान्यकुब्ज
(b) जूनागढ़
(c) मगध
(d) गौड़
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उत्तर ➲ (d) गौड़
- शंशाक, बंगाल का हिन्दू राजा था जिसने सातवीं शताब्दी के अन्तिम चरण में बंगाल पर शासन किया तथा गौड़ राजवंश की स्थापना की।
- मालवा के राजा देवगुप्त से दुरभिसन्धि करके हर्षवर्धन की बहन राज्यश्री के पति कन्नौज के मौखरी राजा गृहवर्मन को मार डाला जिसकी खबर सुनकर हर्षवर्धन ने शशांक से युद्ध की घोषणा कर दी थी।
(Q) मौखरि वंश के पहले शासक जिन्होंने “महाराजाधिराज” की उपाधि धारण की, वे कौन थे?
(a) आदित्य वर्मा
(b) सर्व वर्मा
(c) ईशान वर्मा
(d) अवन्ति वर्मा
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उत्तर ➲ (c) ईशान वर्मा
(Q) चीनी लेखक भारत का उल्लेख किस नाम से करते थे?
(a) फो-क्वो की
(b) यिन-तु
(c) सि-यू की
(d) सिकिया-पोनो
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उत्तर ➲ (b) यिन-तु
- प्राचीन काल में भारत में आए चीनी लेखकों ने भारत को यिन तु (Yin – Tu) तथा थिआन तु (Thian-tu) कहा है।
(Q) हर्षचरित, जो कन्नौज के शासक हर्षवर्धन की जीवनी है, किसके द्वारा लिखी गई थी?
(a) कंबन
(b) जिनसेन
(c) बाणभट्ट
(d) दंडी
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उत्तर ➲ (c) बाणभट्ट
- ‘हर्षचरित’ कन्नौज के शासक हर्षवर्धन की जीवनी है, जो उनके दरबारी कवि बाणभट्ट द्वारा संस्कृत में रचित है।
- उनका दूसरा ग्रंथ कादम्बरी है, जिसे दुनिया का पहला उपन्यास माना जाता है।
- कादम्बरी पूर्ण होने से पहले ही बाणभट्ट की मृत्यु हो गई तथा इस उपन्यास को बाद में उनके पुत्र भूषणभट्ट ने पूरा किया।
(Q) ह्वेनसांग की यात्रा के समय भारत में सूती वस्त्र निर्माण के लिए कौन-सा नगर प्रसिद्ध था?
(a) वाराणसी
(b) मथुरा
(c) पाटलिपुत्र
(d) कांची
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उत्तर ➲ (b) मथुरा
(Q) बौद्ध ग्रंथों की खोज में भारत आने वाले चीनी तीर्थयात्री का नाम क्या था?
(a) फाहिएन
(b) हवैन त्सांग
(c) फा- त्सिंग
(d) वांग-दायुआन
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उत्तर ➲ (b) हवैन त्सांग
- सम्राट हर्ष के शासन काल में चीनी यात्री ह्वेनसांग भारत आया था। वह लगभग 629 ई. से लेकर 645 ई. तक भारत रहा।
- वह नालन्दा के बौद्ध विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए और भारत से बौद्ध ग्रंथ बटोर कर ले जाने के लिए भारत आया था ।
- ह्वेनसांग के अनुसार बौद्ध धर्म के लोग 18 सम्प्रदायों में बंटे हुए थे।
- उसके अनुसार नालन्दा विश्वविद्यालय का भरण पोषण 100 गाँवों के राजस्व से होता था।
(Q) चालुक्य शासक पुलकेशिन ने हर्षवर्धन को किस वर्ष पराजित किया था?
(a) 612 ईस्वी
(b) 618 ईस्वी
(c) 622 ईस्वी
(d) 634 ईस्वी
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उत्तर ➲ (b) 618 ईस्वी
- एहोल अभिलेख से पता चलता है कि चालुक्य शासक पुलकेशिन द्वितीय का हर्षवर्धन से नर्मदा नदी के तट पर युद्ध हुआ जिसमें हर्षवर्धन पराजित हुआ।
- सैकड़ों राजाओं को जीतने के बाद इसने ‘परमेश्वर’ की उपाधि धारण की थी। ध्यातव्य है कि एहोल अभिलेख एक प्रशस्ति के रूप में है तथा इसकी भाषा संस्कृत है, लिपि दक्षिणी ब्राह्मी हैं।
- इसकी रचना रविकीर्ति ने की थी। ध्यातव्य है कि बादामी / वातापी के चालुक्य वंश का संस्थापक पुलकेशिन प्रथम था।
(Q) राजा हर्षवर्धन ने अपने किस भाई की मृत्यु के बाद थानेश्वर और कन्नौज के क्षेत्रों का नियंत्रण स्थापित किया?
(a) सूर्यवर्धन
(b) राज्यवर्धन
(c) चंद्रवर्धन
(d) इंद्रवर्धन
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उत्तर ➲ (b) राज्यवर्धन
- हर्षवर्धन के पिता प्रभाकरवर्धन की मृत्यु (605 ई.) के बाद हर्षवर्धन का बड़ा भाई राज्यवर्धन राजा हुआ, परन्तु मालवा नरेश देवगुप्त और गौंड नरेश शशांक की दुरभिसंधि के कारण वह मारा गया।
- हर्षवर्धन 606 ई. में गद्दी पर बैठा और अपनी बहन राज्यश्री का विंध्याटवी से उद्धार किया तथा थानेश्वर का अपने राज्य में विलय किया, देवगुप्त से मालवा छीन लिया और शशांक को गौंड भगा दिया।
- हर्ष को ‘साहित्यकार सम्राट’ कहा जाता है क्योंकि उसने तीन नाटक प्रियदर्शिका, रत्नावली तथा नागानन्द की रचना की ।
(Q) निम्नलिखित में से किसने चार अश्वमेध यज्ञ किए थे?
(a) पुष्यमित्र शुंग
(b) प्रवरसेन प्रथम
(c) समुद्रगुप्त
(d) चन्द्रगुप्त द्वितीय
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उत्तर ➲ (b) प्रवरसेन प्रथम
(Q) पहली बार पृथ्वी के अपनी धुरी पर घूमने से सूर्योदय और सूर्यास्त का वर्णन किसने किया?
(a) आर्यभट्ट
(b) भास्कर
(c) ब्रह्मगुप्त
(d) वराहमिहिर
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उत्तर ➲ (a) आर्यभट्ट
(Q) हर्ष के समय की जानकारियाँ किस लेखक की रचनाओं में मिलती हैं?
(a) हरिषेण
(b) कल्हण
(c) कालिदास
(d) इनमें से कोई नहीं
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उत्तर ➲ (b) कल्हण
(Q) ‘हर्षचरित’ किसने रचा?
(a) आर्यभट्ट
(b) बाणभट्ट
(c) विष्णुगुप्त
(d) परिमल गुप्त
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उत्तर ➲ (b) बाणभट्ट
(Q) राजस्थान के माउंट आबू में स्थित दिलवाड़ा मंदिर का निर्माण 13वीं शताब्दी में किसके द्वारा किया गया था?
(a) महेन्द्र पाल
(b) महिपाल
(c) राज्य पाल
(d) तेजपाल
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उत्तर ➲ (d) तेजपाल
- तेजपाल एवं वास्तुपाल, जो गुजरात के बघेलवंशीय शासक वीरधवल के दो मंत्री थे, 13वीं शताब्दी में राजस्थान के माउण्ट आबू में प्रसिद्ध दिलवाड़ा मन्दिर बनवाया।
- यह जैनियों का प्रसिद्ध मन्दिर है। जो इनके बाईसवें तीर्थंकर श्री नेमीनाथ को समर्पित है।
(Q) हर्ष के साम्राज्य की राजधानी कहाँ थी?
(a) कन्नौज
(b) पाटलिपुत्र
(c) प्रयाग
(d) थानेश्वर
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उत्तर ➲ (a) कन्नौज
(Q) सम्राट हर्षवर्धन ने दो प्रमुख धार्मिक सम्मेलनों का आयोजन कहाँ किया था?
(a) कन्नौज तथा प्रयाग में
(b) प्रयाग तथा थानेश्वर में
(c) थानेश्वर तथा वल्लभी में
(d) वल्लभी तथा प्रयाग में
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उत्तर ➲ (a) कन्नौज तथा प्रयाग में
(Q) मौखरि शासकों की राजधानी कहाँ थी?
(a) थानेश्वर
(b) कन्नौज
(c) पुरुषपुर
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं
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उत्तर ➲ (b) कन्नौज
- मौखरि वंश की स्थापना उत्तर गुप्त काल के समाप्ति पर हुई थी। मौखरी मूलतः गुप्त वंशीय शासकों के सामंत थे।
- इस वंश के शासकों ने कन्नौज (उ.प्र.) को अपनी राजधानी बनाई थी। इस वंश का प्रथम शासक हरिवर्मा था।
(Q) नर्मदा नदी पर सम्राट हर्ष के दक्षिणवर्ती आगमन को किसने रोका ?
(a) पुलकेशिन I ने
(b) पुलकेसिन II ने
(c) विक्रमादित्य I ने
(d) विक्रमादित्य II ने
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उत्तर ➲ (b) पुलकेसिन II ने
(Q) ह्वेनसांग भारत किसके शासनकाल में आया?
(a) चंद्रगुप्त II
(b) सम्राट हर्ष
(c) चंद्रगुप्त मौर्य
(d) चंद्रगुप्त I
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उत्तर ➲ (b) सम्राट हर्ष
(Q) चीनी यात्री ह्वेनसांग ने किस प्राचीन विश्वविद्यालय में अध्ययन किया था?
(a) तक्षशिला
(b) विक्रमशिला
(c) मगध
(d) नालंदा
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उत्तर ➲ (d) नालंदा
(Q) बाणभट्ट ने किस राजा की जीवनी लिखी?
(a) चंद्रगुप्त मौर्य
(b) हर्षवर्धन
(c) समुद्रगुप्त
(d) अशोक
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उत्तर ➲ (b) हर्षवर्धन
- बाणभट्ट सम्राट हर्ष वर्धन के दरबारी कवि थे। हर्षचरित एवं कादम्बरी इनके द्वारा रचित प्रसिद्ध पुस्तके हैं ।
- हर्षचरित में इन्होंने हर्षवर्द्धन के जीवन चरित्र का वर्णन किया है, जबकि कादम्बरी एक प्रसिद्ध उपन्यास है।
- हर्षचरित ऐतिहासिक विषय पर गद्य-काव्य लिखने का प्रथम सफल प्रयास था । यह भारत में उपलब्ध प्राचीनतम जीवनचरित है।
(Q) भारत में ह्वेनसांग को आज भी किस कारण से याद किया जाता है?
(a) हर्ष के प्रति सम्मान
(b) नालंदा में अध्ययन
(c) बौद्ध धर्म में आस्था
(d) सी यू की की रचना
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उत्तर ➲ (d) सी यू की की रचना
गुप्तोत्तर काल
गुप्त वंश, जिनका शासन केंद्र उत्तर प्रदेश और बिहार में था, लगभग 160 वर्षों तक उत्तरी और पश्चिमी भारत पर शासन करते रहे, जब तक कि छठी शताब्दी के मध्य में उनका पतन नहीं हुआ। इसके बाद, उत्तर भारत कई छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित हो गया। लगभग 500 ईस्वी के बाद, हूणों ने कश्मीर, पंजाब और पश्चिमी भारत पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया। उत्तरी और पश्चिमी भारत कई सामंतों के नियंत्रण में चला गया, जिन्होंने गुप्त साम्राज्य के विभिन्न भागों पर कब्जा कर लिया। धीरे-धीरे, हरियाणा के थानेसर में स्थित एक वंश ने अन्य सामंतों पर अपना नियंत्रण बढ़ा लिया। इस वंश का सबसे प्रसिद्ध शासक हर्षवर्धन (606-647 ईस्वी) था।
हर्षवर्धन (606 – 647 ईस्वी)
कन्नौज: शक्ति का केंद्र
उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले में स्थित कन्नौज शहर छठी शताब्दी के उत्तरार्ध में राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बन गया। हर्षवर्धन के शासनकाल के दौरान यह एक प्रमुख राजनीतिक केंद्र था, जबकि इससे पहले पाटलिपुत्र मुख्य केंद्र हुआ करता था। यह क्षेत्र दोआब के मध्य में स्थित था और सातवीं शताब्दी में इसे मजबूत किलेबंदी के माध्यम से सुरक्षित किया गया था।
हर्षवर्धन का साम्राज्य
- शक्ति केंद्र: हर्षवर्धन ने कन्नौज को अपनी राजधानी बनाया।
- उत्तर भारत में शासन: हर्षवर्धन को उत्तर भारत का अंतिम महान हिंदू सम्राट माना जाता है, लेकिन यह पूरी तरह से सही नहीं है। उन्होंने लगभग पूरे उत्तर भारत (कश्मीर को छोड़कर) पर शासन किया। राजस्थान, पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार और उड़ीसा उनके प्रत्यक्ष नियंत्रण में थे, लेकिन उनका प्रभाव क्षेत्र और भी बड़ा था।
- दक्षिण की सीमा: दक्षिण भारत में, चालुक्य राजा पुलकेशिन द्वितीय ने नर्मदा नदी पर हर्षवर्धन की सेना को रोक दिया। पुलकेशिन का साम्राज्य आधुनिक कर्नाटक और महाराष्ट्र के बड़े हिस्से में फैला था, और उसकी राजधानी बादामी (वर्तमान कर्नाटक के बीजापुर जिले में) थी।
ह्वेनसांग (Hiuen Tsang)
- वह एक चीनी यात्री था, जो 629 ईस्वी में नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन करने भारत आया।
- वह 15 वर्षों तक भारत में रहा और 645 ईस्वी में वापस लौट गया।
- ह्वेनसांग ने हर्षवर्धन के दरबार और तत्कालीन जीवन का विस्तृत वर्णन किया, जो सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक स्थितियों को समझने में मदद करता है।
- उसके अनुसार, पाटलिपुत्र और वैशाली का महत्व घट रहा था, जबकि प्रयाग और कन्नौज प्रमुख केंद्र बन गए थे।
प्रशासनिक व्यवस्था
- सामंतवादी प्रणाली: हर्षवर्धन की प्रशासनिक व्यवस्था सामंतवादी और विकेंद्रित थी। उच्च अधिकारियों और मंत्रियों को भूमि प्रदान की जाती थी।
- भूमिदान प्रथा: धार्मिक कार्यों और सेवाओं के लिए ब्राह्मणों को भूमि अनुदान दिए जाते थे। हर्षवर्धन ने अधिकारियों को भी भूमि अनुदान प्रदान किए।
- राजस्व का विभाजन: चीनी यात्री ह्वेनसांग के अनुसार, हर्षवर्धन का राजस्व चार भागों में विभाजित था –
- राजा के निजी खर्च के लिए
- विद्वानों के लिए
- सरकारी अधिकारियों और सेवकों के लिए
- धार्मिक कार्यों के लिए
- सैन्य शक्ति: हर्षवर्धन की सैन्य शक्ति उसके सामंतों के सहयोग पर निर्भर थी, जिन्होंने उसे सैनिक और घोड़े प्रदान किए।
- कानून व्यवस्था: कानून व्यवस्था कमजोर थी। यहाँ तक कि ह्वेनसांग को भी लूट लिया गया था, और लूटपाट को गंभीर अपराध माना जाता था।
सामाजिक विकास
- ब्राह्मण और क्षत्रिय सादा जीवन व्यतीत करते थे, जबकि राजदरबारी और पुरोहित विलासितापूर्ण जीवन जीते थे।
- ह्वेनसांग ने शूद्रों को मुख्य रूप से कृषक वर्ग के रूप में वर्णित किया है।
- अछूतों, जैसे कि सफाई कर्मी और जल्लाद, गाँव के बाहर रहते थे।
धार्मिक विकास
- धार्मिक नीति: हर्षवर्धन ने धार्मिक सहिष्णुता अपनाई। वह अपने प्रारंभिक जीवन में शिव भक्त थे, लेकिन बाद में बौद्ध धर्म के समर्थक बन गए।
- बौद्ध धर्म: हर्षवर्धन ने महायान बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए कन्नौज में एक भव्य सभा का आयोजन किया।
- बौद्ध संप्रदाय: ह्वेनसांग के अनुसार, भारत में उस समय बौद्ध धर्म 18 विभिन्न संप्रदायों में बंटा हुआ था, और पुराने बौद्ध केंद्र संकट में थे।
साहित्यिक योगदान
- हर्षचरित्र: प्रसिद्ध लेखक बाणभट्ट ने हर्षवर्धन के जीवन का विस्तृत विवरण अपनी पुस्तक हर्षचरित्र में लिखा है।
- नाटक: हर्षवर्धन ने स्वयं तीन नाटक लिखे – प्रियदर्शिका, रत्नावली और नागानंद । वे साहित्य प्रेमी थे और विद्वानों को संरक्षण प्रदान करते थे।
नालंदा विश्वविद्यालय
- यह बौद्ध भिक्षुओं के लिए सबसे प्रसिद्ध विश्वविद्यालय था, जहाँ 10,000 से अधिक छात्र अध्ययन करते थे।
- यहाँ महायान बौद्ध दर्शन पढ़ाया जाता था।
- 670 ईस्वी में चीनी यात्री इ-त्सिंग (I-Tsing) ने नालंदा का दौरा किया और पाया कि तब केवल 3,000 भिक्षु वहाँ अध्ययन कर रहे थे।
- नालंदा मठ 200 गाँवों की राजस्व आय से संचालित होता था।
इक्ष्वाकु वंश (225 – 340 ईस्वी)
- सातवाहन वंश के पतन के बाद कृष्णा-गुंटूर क्षेत्र में इक्ष्वाकु वंश का उदय हुआ।
- यह वंश 225 से 340 ईस्वी तक सत्ता में रहा।
- ये संभवतः एक स्थानीय जनजाति थी, जिसने अपने वंश की प्राचीनता दिखाने के लिए इक्ष्वाकु नाम अपनाया।
- इन्होंने नागार्जुनकोंडा और धरनीकोटा में कई स्मारकों का निर्माण कराया।
- इक्ष्वाकु शासकों ने कृष्णा-गुंटूर क्षेत्र में भूमि अनुदान की परंपरा शुरू की, जहाँ उनकी कई ताम्रपत्र अभिलेखियाँ मिली हैं।
- इनके बाद पल्लव वंश का उदय हुआ।
पल्लव वंश (275 – 897 ईस्वी)
- इक्ष्वाकु वंश के पतन के बाद, पल्लव वंश दक्षिण भारत में एक शक्तिशाली वंश के रूप में उभरा।
- पल्लवों का शासनकाल 275 से 897 ईस्वी तक रहा।
- “पल्लव” शब्द संस्कृत में “लता” (creeper) का अर्थ रखता है और यह तमिल शब्द “टोंडई” का संस्कृत रूपांतर माना जाता है।
पल्लवों का भौगोलिक विस्तार
पल्लव संभवतः एक स्थानीय जनजाति थे जिन्होंने तोंडाईनाडु (लताओं की भूमि) पर अपना अधिकार स्थापित किया। उनका प्रभाव दक्षिणी आंध्र प्रदेश और उत्तरी तमिलनाडु तक फैला हुआ था। उन्होंने अपनी राजधानी कांची में स्थापित की, जो आधुनिक कांचीपुरम से मेल खाती है। पल्लवों के शासनकाल में यह नगर मंदिरों और वैदिक शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र बन गया।
महत्वपूर्ण पल्लव शासक
- सिंहवर्मन (300 ई.) – उन्होंने इक्ष्वाकु राजा रुद्रपुरुषदत्त को हराकर तटीय आंध्र प्रदेश में पल्लव शासन की नींव रखी।
- सिंहवर्मन (280-335 ई.) – उन्हें इस वंश का संस्थापक माना जाता है। शिवस्कंदवर्मन (चौथी शताब्दी ई.) प्रारंभिक पल्लवों में सबसे महान शासक थे।
- सिंहविष्णु – उन्होंने कलाभ्रों को हराकर पल्लव साम्राज्य की नींव रखी।
- महेंद्रवर्मन प्रथम (590-630 ई.) – एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी शासक थे। उनके शासनकाल में पल्लव-चालुक्य संघर्ष प्रारंभ हुआ।
- नरसिंहवर्मन प्रथम (630-668 ई.) – उन्हें “महामल्ल” की उपाधि प्राप्त थी। उन्होंने श्रीलंका में सिंहली राजकुमार मानवर्मन को पुनर्स्थापित किया। उनके शासनकाल में ह्वेनसांग ने कांची की यात्रा की और शहर में बौद्ध धर्म, जैन धर्म और हिंदू धर्म की उन्नति का उल्लेख किया। उन्होंने महाबलीपुरम में एकलाश्मी रथों का निर्माण कराया।
- महेंद्रवर्मन द्वितीय (668-670 ई.) – उनका शासनकाल केवल दो वर्ष चला, क्योंकि चालुक्य राजा विक्रमादित्य प्रथम ने उन्हें पराजित कर दिया।
- परमेश्वरवर्मन प्रथम (670-695 ई.) – उन्होंने चालुक्यों और उनके सहयोगी गंगों पर निर्णायक जीत हासिल की।
- नरसिंहवर्मन द्वितीय (695-722 ई.) – उन्हें “राजसिंह” की उपाधि प्राप्त थी। उन्होंने महाबलीपुरम में शोर मंदिर और कांची में कैलासनाथ मंदिर का निर्माण कराया।
- नंदिवर्मन द्वितीय (731-795 ई.) – वे विष्णु भक्त और विद्या संरक्षक थे। उनके शासनकाल में कई मंदिरों का पुनर्निर्माण हुआ, और कांची में वैकुंठपेरुमाल मंदिर का निर्माण कराया गया।
पल्लवों की प्रशासनिक व्यवस्था
पल्लव शासन एक राजतंत्रीय प्रणाली थी। शासकों ने “धर्म-महाराज” की उपाधि धारण की, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वे धर्मानुसार शासन करते थे।
राज्य विभाजन
राज्य को कोट्टम नामक प्रशासनिक इकाइयों में विभाजित किया गया था। प्रत्येक कोट्टम का प्रशासन राजा द्वारा नियुक्त अधिकारियों द्वारा किया जाता था।
ग्राम प्रशासन – गांव प्रशासन की देखरेख स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं द्वारा की जाती थी।
दक्षिण भारत में तीन प्रकार के गांव पाए जाते थे :
- उर – सामान्य गांव, जहां कृषक जातियां निवास करती थीं और सामूहिक रूप से भूमि का स्वामित्व रखती थीं।
- सभा – ये ब्राह्मणों को दान में दी गई भूमि (ब्राह्मदेय) के अंतर्गत आते थे।
- नगरम् – व्यापारियों और शिल्पकारों के निवास वाले गांव।
भूमि राजस्व प्रमुख आय स्रोत था। पेशे, विवाह, नमक, चीनी, वस्त्र निर्माण और पशुधन पर कर लगाए जाते थे।
कृषकों का असंतोष और कलाभ्र विद्रोह
युद्ध, कला, धर्म और प्रशासन चलाने के लिए संसाधनों की आवश्यकता थी, जिसके लिए कृषकों पर करों का बोझ डाला गया।
- ब्राह्मणों को कर-मुक्त गांव दिए गए।
- पल्लवों के प्रारंभिक काल में 16 भूमि अनुदान उपलब्ध थे।
- चौथी शताब्दी के एक पल्लव अनुदान में ब्राह्मणों को 18 प्रकार की विशेष छूट दी गई।
इससे कृषकों की स्थिति दयनीय हो गई, और छठी शताब्दी में कलाभ्र विद्रोह हुआ। यह विद्रोह पल्लवों और उनके समकालीन राजवंशों पर भारी पड़ा।
- कलाभ्रों ने ब्राह्मणों के ब्राह्मदेय अधिकार समाप्त कर दिए।
- उन्होंने चोल, पांड्य और चेर शासकों को बंदी बना लिया।
- अंततः पांड्य, पल्लव और चालुक्य राजाओं ने मिलकर इस विद्रोह को कुचल दिया।
धर्म
पल्लव शासक वैष्णव और शैव धर्म के अनुयायी थे। उन्होंने अश्वमेध और वाजपेय यज्ञों का आयोजन किया।
- सातवीं शताब्दी से नायनारों और आलवारों ने भक्ति आंदोलन को बढ़ावा दिया।
- इस दौरान बौद्ध और जैन धर्म राजकीय संरक्षण खोने लगे, हालांकि वे अभी भी प्रचलित थे, जिसका उल्लेख ह्वेनसांग ने किया।
साहित्य
पल्लव शासनकाल में शिक्षा और साहित्य का उत्कर्ष हुआ।
- कांची विश्वविद्यालय – यह विद्या का प्रमुख केंद्र था, जहां भारत और विदेशों से छात्र आते थे।
- संस्कृत साहित्य –
- किरातार्जुनीयम (भारवि)
- दशकुमारचरित (डांडी)
- मट्टविलासप्रहसन (महेंद्रवर्मन प्रथम)
- तमिल साहित्य –
- तिरुवल्लुवर ने ‘कुरल’ की रचना की।
- नंदिवर्मन द्वितीय के संरक्षण में पेरुन्देवनार ने महाभारत का तमिल अनुवाद किया।
- नायनारों की “तेवरम” और आलवारों की “नालयार दिव्य प्रबन्धम” प्रमुख रचनाएं थीं।
कला और स्थापत्य
पल्लव राजाओं ने सातवीं और आठवीं शताब्दी में पत्थरों से निर्मित मंदिरों का निर्माण कराया।
- महाबलीपुरम के रथ मंदिर – नरसिंहवर्मन प्रथम ने बनवाए।
- शोर मंदिर – महाबलीपुरम का प्रसिद्ध मंदिर।
- कांची का कैलासनाथ मंदिर – आठवीं शताब्दी में निर्मित।
पल्लवों का पतन
- विक्रमादित्य द्वितीय का आक्रमण – चालुक्य राजा ने कांची पर हमला किया और अस्थायी रूप से कब्जा कर लिया।
- अन्य राजवंशों के आक्रमण – पांड्य, पश्चिमी गंगा और राष्ट्रकूटों ने पल्लव साम्राज्य पर आक्रमण किए।
- कांची का अधिग्रहण – चोल शासक आदित्य प्रथम ने अपराजितवर्मन को हराकर कांची पर अधिकार कर लिया। इसके साथ ही पल्लवों का वर्चस्व समाप्त हो गया।
पल्लव और चालुक्य के बीच संघर्ष
छठी से आठवीं शताब्दी ईस्वी के दौरान कृष्णा और तुंगभद्रा नदियों के बीच के क्षेत्र पर अधिकार जमाने के लिए पल्लवों और चालुक्यों के बीच लंबे समय तक संघर्ष चला। इस संघर्ष में तमिलनाडु के मदुरै और तिरुनेलवेली जिलों पर शासन करने वाले पांड्य भी शामिल हो गए।
पुलकेशिन द्वितीय की विजय
इस संघर्ष की पहली महत्वपूर्ण घटना चालुक्य सम्राट पुलकेशिन द्वितीय (609-642 ईस्वी) के शासनकाल में घटी।
- उन्होंने बनवासी स्थित कदंब राजधानी को नष्ट कर दिया और मैसूर के गंगों को अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए मजबूर किया।
- उन्होंने नर्मदा के पास हर्षवर्धन की सेना को हराया और उनकी दक्कन में बढ़त को रोक दिया।
- उन्होंने पल्लव राजधानी कांची तक पहुंचने का प्रयास किया, लेकिन पल्लवों ने अपने उत्तरी प्रदेश चालुक्यों को सौंपकर शांति स्थापित कर ली।
- लगभग 610 ईस्वी में उन्होंने कृष्णा और गोदावरी नदियों के बीच का पूरा क्षेत्र जीत लिया, जिसे वेंगी प्रांत कहा जाने लगा। यहां चालुक्यों की एक शाखा स्थापित हुई, जिसे वेंगी के पूर्वी चालुक्य कहा जाता है। हालांकि, पुलकेशिन का दूसरा पल्लव क्षेत्र पर आक्रमण असफल रहा।
पल्लवों का प्रतिशोध
पल्लव शासक नरसिंहवर्मन (630-668 ईस्वी) ने 642 ईस्वी में चालुक्य राजधानी वातापी पर कब्जा कर लिया और पुलकेशिन द्वितीय को मार दिया।
- उन्होंने “वातापीकोंडा” (वातापी का विजेता) की उपाधि धारण की।
- उन्होंने चोल, चेर, पांड्य और कलभ्रों को भी पराजित किया।
चालुक्य सम्राट विक्रमादित्य द्वितीय (733-745 ईस्वी) ने तीन बार कांची पर आक्रमण किया और 740 ईस्वी में पल्लवों को पूरी तरह से पराजित कर दिया। हालांकि, 757 ईस्वी में चालुक्यों का वर्चस्व समाप्त हो गया, जब उनके साम्राज्य को राष्ट्रकूटों ने हड़प लिया।
कदंब राजवंश (345 – 540 ईस्वी)
कदंब वंश की स्थापना मयूरशर्मन ने की थी।
- कहा जाता है कि वे शिक्षा प्राप्त करने के लिए कांची आए थे, लेकिन उनका अपमान हुआ।
- इस अपमान से प्रेरित होकर, उन्होंने जंगल में शिविर स्थापित किया और पल्लवों को हरा दिया, संभवतः वनवासियों की सहायता से।
- हालांकि, बाद में पल्लवों ने कदंबों को हराया लेकिन मयूरशर्मन को औपचारिक रूप से राजा के रूप में मान्यता दी।
- उन्होंने 18 अश्वमेध यज्ञ किए और ब्राह्मणों को कई गांव दान किए।
- उनकी राजधानी वैजयंती (बनवासी) थी, जो आज के कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ जिले में स्थित थी।
गंग राजवंश (250 – 1004 ईस्वी)
गंग राजवंश पल्लवों का एक समकालीन राजवंश था।
- चौथी शताब्दी में उन्होंने दक्षिणी कर्नाटक में अपना साम्राज्य स्थापित किया।
- उनका राज्य पूर्व में पल्लवों और पश्चिम में कदंबों के बीच स्थित था।
- इन्हें पश्चिमी गंग या मैसूर के गंग कहा जाता है ताकि इन्हें पूर्वी गंगों (जो कलिंग में शासन करते थे) से अलग पहचाना जा सके।
- अधिकतर समय वे पल्लवों के सामंत रहे।
- उनकी प्रारंभिक राजधानी कोलार थी, जो सोने की खदानों के कारण महत्वपूर्ण बनी।
- पश्चिमी गंगों ने जैन धर्म के अनुयायियों को भूमि दान में दी।
वाकाटक वंश (250 – 500 ईस्वी)
वाकाटक वंश ने तीसरी शताब्दी में महाराष्ट्र और विदर्भ (बेरार) में सत्ता संभाली।
- वे ब्राह्मण धर्म के अनुयायी थे और उन्होंने कई वैदिक यज्ञ किए।
- इस वंश का राजनीतिक प्रभाव उत्तर भारत पर अधिक था।
- गुप्त सम्राट चंद्रगुप्त द्वितीय ने अपनी पुत्री प्रभावती गुप्ता का विवाह वाकाटक राजकुमार से किया और इस गठबंधन के माध्यम से शकों को हराकर गुजरात पर अधिकार कर लिया।
- वाकाटक शासन के दौरान दक्षिण भारत में ब्राह्मण संस्कृति और सामाजिक संस्थाएं फैल गईं।
- इनके बाद बादामी के चालुक्य सत्ता में आए, जिन्होंने दो शताब्दियों तक दक्षिण भारत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
चालुक्य वंश (543 – 757 ईस्वी)
वाकाटक वंश के बाद बादामी के चालुक्य सत्ता में आए।
- वे 757 ईस्वी तक शासन करते रहे, जब राष्ट्रकूटों ने उन्हें हटा दिया।
- चालुक्य अपने वंश को ब्रह्मा, मनु या चंद्रमा से जोड़ते थे और अपनी वैधता सिद्ध करने के लिए अपने पूर्वजों को अयोध्या के शासक बताते थे।
चालुक्य प्रशस्ति
चालुक्य राजा पुलकेशिन द्वितीय सबसे प्रसिद्ध शासक थे।
- उनके बारे में जानकारी रविकीर्ति नामक कवि द्वारा लिखी गई प्रशस्ति से मिलती है।
- इसमें उनके चार पीढ़ी पूर्व के पूर्वजों का वर्णन किया गया है।
- पुलकेशिन ने पश्चिमी और पूर्वी दोनों तटों पर सैन्य अभियान चलाए।
- उन्होंने हर्षवर्धन की बढ़त को रोका।
- उन्होंने पल्लवों पर भी आक्रमण किया, जिससे पल्लव राजा को कांची के किले में शरण लेनी पड़ी।
कला और वास्तुकला
बादामी चालुक्य काल में कला और स्थापत्य का उत्कर्ष हुआ।
- 610 ईस्वी के आसपास ऐहोल में कई मंदिर बनाए गए।
- बादामी और पट्टदकल में भी मंदिरों का निर्माण हुआ।
- पट्टदकल में पापनाथ मंदिर (680 ईस्वी) और वीरुपाक्ष मंदिर (740 ईस्वी) प्रमुख हैं।
- दुर्गा मंदिर (ऐहोल) सूर्य देवता को समर्पित था और इसमें शिव, विष्णु, शक्ति और वैदिक देवताओं की मूर्तियां थीं।
साहित्य
- चालुक्य शासनकाल में कन्नड़ और तेलुगु साहित्य को बढ़ावा मिला।
- कन्नड़ साहित्य के तीन प्रमुख कवि आदिकवि पंपा, श्री पोन्ना और रन्ना इसी काल के थे।
प्रशासनिक व्यवस्था
- कर प्रणाली: सरकार हेरजुंका, किरिकुला, बिल्कोडे और पन्नाया नामक कर वसूलती थी।
- साम्राज्य का विभाजन:
- महाराष्ट्रक (प्रांत)
- राष्ट्रक (मंडल)
- विशय (जिला)
- भोग (10 गांवों का समूह)
- मंदिरों में महाजनों (ब्राह्मण विद्वानों) का शासन था।
- सेना में पैदल सेना, घुड़सवार, हाथी दल और शक्तिशाली नौसेना शामिल थी।
सामाजिक और धार्मिक स्थिति
- प्रारंभ में वैदिक हिंदू धर्म प्रचलित था, लेकिन बाद में शैव धर्म लोकप्रिय हुआ।
- जैन धर्म को भी संरक्षण मिला, जैसा कि ऐहोल के जैन मंदिरों से स्पष्ट होता है।
- समाज में राजकुमारों और पुरोहितों का वर्चस्व था।
निष्कर्ष
गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद कई छोटे राज्यों का उदय हुआ।
- हालांकि, इनमें से अधिकांश राज्य अपेक्षाकृत छोटे थे।
- इस काल में क्षेत्रीय संघर्ष तो हुए लेकिन राज्य संरचना स्थिर रही।
- बाद में, इन क्षेत्रीय शक्तियों ने भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
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