Jharkhand ka bhugol MCQ। झारखण्ड का भूगोल Quiz Mock Test

Jharkhand ka bhugol

Jharkhand ka bhugol (झारखण्ड का भूगोल) से सम्बंधित Quiz or MCQ का Mock Test देकर आप यहाँ बहुवैकल्पिक प्रश्न / Objective Question Answer की Practice आसानी से कर सकते हैं।

Jharkhand ka bhugol का सामान्य परिचय –

  • झारखण्ड राज्य का भौगोलिक विस्तार उत्तरी अक्षांश और पूर्वी देशांतर के मध्य है।
  • झारखण्ड राज्य का भौगोलिक विस्तार उत्तरी अक्षांश के मध्य 21°58’10” से 25°19’15” है तथा झारखण्ड राज्य का भौगोलिक विस्तार पूर्वी देशांतर के मध्य 83°19’50”  से 87°57′ है।
  • झारखण्ड क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत का 15वाँ बड़ा राज्य है तथा जनसंख्या की दृष्टि से झारखण्ड देश में 14वें स्थान पर स्थित है।
  • झारखण्ड भारत के पूर्वी भाग में स्थित है। झारखण्ड राज्य की कुल जनसंख्या भारत के कुल जनसंख्या का 2.72% है।
  • झारखण्ड राज्य विश्व मानचित्र के उत्तरी गोलार्ध में स्थित है।
  • झारखण्ड राज्य का निर्माण बिहार के कितने 46% भूभाग को अलग करके किया गया था।
  • झारखण्ड राज्य कुल 5 राज्यों की सीमाओं को स्पर्श करती है – पूर्व में पश्चिम बंगाल की सीमा को, पश्चिम में छत्तीसगढ़ की सीमा को, उत्तर में बिहार की सीमा को, दक्षिण में उड़ीसा की सीमा को, तथा पश्चिमोत्तर में उत्तर प्रदेश की सीमा को स्पर्श करती है।
  • झारखण्ड का सबसे बड़ा भाग छोटानागपुर है तथा झारखण्ड का दूसरा सबसे बड़ा भाग संथाल परगना है।
  • उत्तर से दक्षिण तक झारखण्ड का विस्तार 380 किमी. है तथा पूर्व से पश्चिम तक झारखण्ड का विस्तार 463 किमी. है।
  • झारखण्ड राज्य का कुल क्षेत्रफल 79,714 वर्ग किमी. है तथा झारखण्ड राज्य का क्षेत्रफल भारत के कुल क्षेत्रफल का 2.42% है।
  • झारखण्ड की एक भी भौगोलिक सीमा समुद्र तट को स्पर्श नहीं करती है। झारखण्ड एक Landlock राज्य है।
  • झारखण्ड के मध्य से कर्क रेखा गुजरती है, यह रामगढ़ (गोला), लातेहार (नेतरहाट), गुमला, रांची (कांके तथा ओरमांझी), तथा लोहरदगा (किस्को) से होकर गुजरती है।
  • झारखण्ड राज्य की आकृति चतुर्भुजाकार है।
  • झारखण्ड राज्य के अधिकतर चट्टानों का विस्तार पूर्व – पश्चिम दिशा में है। झारखण्ड राज्य की एकमात्र चट्टान सिंहभूम की चट्टान है जिसका विस्तार दक्षिण पूर्व से दक्षिण पश्चिम की ओर है।
  • पाट क्षेत्र झारखण्ड के छोटानागपुर पठार का सबसे ऊँचा स्थान है तथा पारसनाथ पहाड़ी झारखण्ड की सबसे ऊँची चोटी है।
  • झारखण्ड के सम्पूर्ण भू-भाग के क्षेत्रफल के 29.62% भू-भाग पर वन का विस्तार पाया जाता है।
  • गढ़वा झारखण्ड राज्य का एकमात्र जिला है जो उत्तर प्रदेश राज्य की सीमा को स्पर्श करता है।
  • गढ़वा झारखण्ड राज्य का एकमात्र जिला है जो तीन राज्यों छत्तीसगढ़, बिहार, तथा उत्तर प्रदेश के साथ सीमा बनाता है।
  • सोन नदी को छोड़ झारखण्ड की सभी नदियाँ बरसाती है।
  • झारखण्ड के साथ साथ भारत की भी प्रथम बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजना दामोदर नदी घाटी परियोजना है।
  • झारखण्ड में बहुतायत मात्रा में जलप्रपात तथा गर्म जलकुंड पाए जाते है।
  • झारखण्ड के सर्वाधिक 10 जिलों के साथ सीमा बनाने वाले पड़ोसी राज्य बिहार तथा पश्चिम बंगाल है।
  • झारखण्ड राज्य का खूँटी तथा लोहरदगा जिला किसी अन्य राज्य के साथ सीमा नहीं बनाता।
  • झारखण्ड का सर्वाधिक क्षेत्रफल वाला जिला पश्चिम सिंहभूम (7224 वर्ग किमी) है।
  • झारखण्ड का न्यूनतम क्षेत्रफल वाला जिला रामगढ़ (1341 वर्ग किमी) है।

Jharkhand ka bhugol की भूगर्भिक संरचना –

झारखण्ड का भूगोल में एक महत्वपूर्ण भाग झारखण्ड की भूगर्भिक संरचना का है। झारखण्ड की भूगर्भिक संरचना हमें झारखण्ड के चट्टानों के निर्माण के बारे में बताती हैं।

झारखण्ड क्षेत्र में विभिन्न कालों में लम्बे समय तक होते रहे भूगर्भिक हलचलों के कारण विविध चट्टानों का निर्माण हुआ है। झारखण्ड क्षेत्र में आर्कियनकालीन क्रम की चट्टान, धारवाड़ क्रम की चट्टान, विंध्यन क्रम की चट्टान, गोंडवाना क्रम की चट्टान, दक्कन लावा की चट्टान तथा नवीनतम जलोढ़ चट्टान प्रमुख रूप से पाए जाते हैं।

आर्कियनकालीन क्रम की चट्टान –

  • आर्कियनकालीन क्रम की चट्टान झारखण्ड की सबसे प्रमुख चट्टान है यह चट्टान झारखण्ड के 90% भू-भाग में पाया जाता है।
  • आर्कियनकालीन क्रम की चट्टानों के अपरदन के कारण आग्नेय, अवसादी तथा रूपांतरित चट्टानों का निर्माण हुआ है।
  • झारखण्ड के क्षेत्र सिमडेगा, सिंहभूम, सरायकेला तथा दक्षिण पूर्वी झारखण्ड में आर्कियनकालीन क्रम की चट्टान का विस्तार मिलता है।
  • आर्कियनकालीन क्रम की चट्टान गर्म लावा से निर्मित ग्रेनाइट चट्टान होने के कारण इन चट्टानों में जीवाश्म नहीं पाया जाता है।
  • झारखण्ड के छोटानागपुर पठार की आग्नेय, अवसादी तथा रूपांतरित चट्टानों का निर्माण इसी काल में हुआ था।
  • आर्कियनकालीन क्रम की चट्टान में खनिज संसाधन भरपूर मात्रा में पाया जाता है।
  • आर्कियनकालीन क्रम की चट्टान के अपरदन के कारण यह नीस और सिस्ट में परिवर्तित हो गए।
  • यह चट्टान झारखण्ड की आर्थिक दृष्टि से सबसे प्रमुख चट्टान है।

गोंडवाना क्रम की चट्टान –

  • गोंडवाना क्रम की चट्टान में बलुआ पत्थर की परत के आलावा कोयला का भंडार भी पाया जाता है।
  • दामोदर घाटी के तलछट से गोंडवाना क्रम की चट्टान का निर्माण हुआ है।
  • गोंडवाना क्रम की चट्टान झारखण्ड क्षेत्र के उत्तरी कोयल नदी घाटी क्षेत्र, अजय नदी घाटी क्षेत्र, गिरिडीह तथा राजमहल की पहाड़ियों के आसपास के क्षेत्रों में पाया जाता है।
  • कोयला के प्रचुर भंडार के कारण गोंडवाना क्रम की चट्टान झारखण्ड की आर्थिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है।

धारवाड़ क्रम की चट्टान –

  • तरल लावा से निर्मित होने के कारण इन चट्टानों में जीवाश्म नहीं पाए जाते हैं।
  • धारवाड़ क्रम की चट्टान को “लौह अयस्क की श्रृंखला” भी कहा जाता है क्योंकि धारवाड़ क्रम की चट्टानों में लौह अयस्क प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
  • आर्कियनकालीन क्रम की चट्टान के अपरदन और निक्षेपण के कारण धारवाड़ क्रम की चट्टानों का निर्माण हुआ।
  • धारवाड़ क्रम की चट्टान झारखण्ड के सरायकेला-खरसावां, पूर्वी सिंहभूम तथा पश्चिमी सिंहभूम के क्षेत्र में पाया जाता है।
  • धारवाड़ क्रम की चट्टानों में धात्विक खनिज की प्रचुरता पाई जाती है।
  • धारवाड़ क्रम की चट्टान को कोल्हान क्रम की चट्टान भी कहा जाता है क्योंकि इन चट्टानों का मूल विस्तार कोल्हान क्षेत्र में है।

दक्कन लावा की चट्टान (राजमहल ट्रैम्प) –

  • दक्कन लावा की चट्टान के अपरदन के कारण बॉक्साइट तथा लैटेराइट का निर्माण हुआ है।
  • दक्कन लावा की चट्टान का निर्माण लावा के बहाव के कारण हुआ है।
  • राजमहल ट्रैम्प की ऊंचाई 900 से 1100 मीटर के लगभग है।
  • झारखण्ड के पाकुड़ के पूर्व के क्षेत्र, साहेबगंज के पूर्वोत्तर क्षेत्र, तथा झारखण्ड के पाट क्षेत्र में राजमहल ट्रैम्प का विस्तार पाया जाता है।

विंधयन क्रम की चट्टान –

  • विंधयन क्रम की चट्टान अवसादों के जमा होने पर चुना पत्थर और बलुआ पत्थर से बनी परतदार चट्टान है।
  • झारखण्ड के उत्तर-पश्चिमी भाग में गढ़वा के आस पास के क्षेत्रों में विंधयन क्रम की चट्टान पाए जाते हैं।

नवीनतम जलोढ़ निक्षेप –

  • झारखण्ड में नवीनतम जलोढ़ निक्षेप स्वर्णरेखा नदी की निचली घाटी क्षेत्र, सोन नदी घाटी तथा राजमहल के पूर्वी क्षेत्रों में इसका निर्माण हुआ है।
  • नदियों के अपरदन तथा जलोढ़ के जमाव के परिणाम स्वरूप जलोढ़ निक्षेप का निर्माण हुआ है।
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Jharkhand ka Bhugol का धरातलीय स्वरुप –

झारखण्ड का भूगोल में एक महत्वपूर्ण भाग झारखण्ड का धरातलीय स्वरुप का है। झारखण्ड का धरातलीय स्वरुप हमें झारखण्ड के पठारों के निर्माण के बारे में बताती हैं।

छोटानागपुर पठारी क्षेत्र का झारखण्ड के धरातलीय स्वरुप के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान है। लावा के जमाव के कारण छोटानागपुर पत्थर का निर्माण हुआ है। छोटानागपुर पठार की औसत ऊंचाई 760 मीटर है। छोटानागपुर पठारी क्षेत्र भारत के प्रायद्वीपीय पठार का उत्तर-पूर्वी हिस्सा है। छोटानागपुर पठार का निर्माण लावा के जमाव के कारण हुआ है। छोटानागपुर पठारी क्षेत्र का झारखण्ड के धरातलीय स्वरुप के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान है।

छोटानागपुर पठार की सबसे ऊँची चोटी पारसनाथ पहाड़ी है। पारसनाथ पहाड़ी को सम्मेद शिखर भी कहा जाता है। पारसनाथ पहाड़ी की ऊंचाई 1365 मीटर तथा 4478 फीट है। पारसनाथ पहाड़ी झारखण्ड की सबसे ऊँची चोटी है।

Jharkhand ka bhugol के धरातलीय स्वरुप का विभाजन –

झारखण्ड के धरातलीय स्वरुप का विभाजन इस प्रकार है – पाट क्षेत्र, राजमहल की पहाड़ियाँ तथा मैदानी क्षेत्र, ऊपरी हजारीबाग का पठार, निचला हजारीबाग का पठार, राँची का पठार।

पाट क्षेत्र –

  • झारखण्ड का सबसे ऊँचा भाग पाट क्षेत्र है।
  • पाट क्षेत्र का विस्तार राँची के उत्तर-पश्चिमी हिस्से से लेकर पलामू जिले के दक्षिणी हिस्से तक है।
  • पाट का अर्थ समतल जमीन होता है।
  • पाट क्षेत्र की आकृति त्रिभुजाकार है।
  • समुद्र तल से पाट क्षेत्र की औसत ऊंचाई 900 मीटर / 3000 फीट है।
  • पाट क्षेत्र का शीर्ष – दक्षिण तथा आधार – उत्तर की ओर है।
  • पाट क्षेत्र का ऊपरी भाग टांड कहलाता है।
  • पाट क्षेत्र का निचला भाग दोन कहलाता है।
  • पाट क्षेत्र के सबसे ऊँचे पात निम्नलिखित हैं – नेतरहाट पाट, गणेशपुर पाट, जनीरा पाट
  • नेतरहाट पाट सबसे ऊँचा पाट है जिसकी ऊंचाई 1180 मीटर / 3871 फीट है।
  • गणेशपुर पाट की ऊंचाई 1171 मीटर है।
  • जनीरा पाट की ऊंचाई 1142 मीटर है।
  • पाट क्षेत्र की प्रमुख पहाड़ी सानु एवं सारऊ पहाड़ी है।
  • पाट क्षेत्र से शंख नदी, उत्तरी कोयल आदि नदियों का उद्गम भी होता है।
  • झारखण्ड के पाट क्षेत्र का हिस्सा ‘तश्तरीनुमा बारवे का मैदान’ है।

राजमहल की पहाड़ियाँ तथा मैदानी क्षेत्र –

  • राजमहल पहाड़ी 2000 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है।
  • राजमहल पहाड़ी क्षेत्र का विस्तार गोड्डा, पाकुड़, साहेबगंज, देवघर तथा दुमका जिले तक फैला हुआ है।
  • समुद्र तल से राजमहल पहाड़ी की ऊँचाई 300 मीटर तक है।
  • राजमहल पहाड़ी क्षेत्र के नुकीली पहाड़ियों को टोंगरी कहा जाता है तहा गुम्बदनुमा पहाड़ियों को डोंगरी कहा जाता है।
  • राजमहल की पहाड़ियाँ तथा मैदानी क्षेत्र में स्थित राजमहल पहाड़ी का फैलाव बिहार राज्य के दक्षिण – पूर्व भाग तक है।
  • राजमहल की पहाड़ियाँ तथा मैदानी क्षेत्र का सबसे महत्वपूर्ण मैदानी क्षेत्र “चाईबासा का मैदान” है।
  • चाईबासा का मैदान पूर्व में ढालभूम की श्रेणी से घिरा हुआ है, पश्चिम में सारंडा के वन से घिरा हुआ है, उत्तर में दलमा की श्रेणी से घिरा हुआ है, दक्षिण में कोल्हान की पहाड़ी से घिरा हुआ है, तथा पश्चिमोत्तर में पोरहाट की पहाड़ी से घिरा हुआ है।
  • चाईबासा के मैदान के दक्षिण में अजय नदी घाटी स्थित है।

ऊपरी हजारीबाग का पठार –

  • ऊपरी हजारीबाग के पठार की ऊँचाई 600 मीटर / 1970 फीट है।
  • ऊपरी हजारीबाग का पठार क्षेत्र हजारीबाग जिला में फैला हुआ है।
  • दामोदर घाटी के निर्माण के बाद हजारीबाग का पठार, राँची के पठार से कटाव के कारण अलग हो गया। कालांतर में हजारीबाग का पठार, राँची के पठार से जुड़ा हुआ था।

निचला हजारीबाग का पठार –

  • निचला हजारीबाग के पठार की ऊँचाई 450 मीटर / 1476 फीट है।
  • निचला हजारीबाग का पठार झारखण्ड की सबसे कम ऊँचाई वाला पठारी क्षेत्र है।
  • निचला हजारीबाग के पठार क्षेत्र में गिरिडीह के पठार पर बराकर नदी की घाटी के समीप पारसनाथ की पहाड़ी स्थित है।
  • पारसनाथ की पहाड़ी बराकर नदी घाटी के समीप गिरिडीह के पठार पर स्थित है।
  • पारसनाथ की पहाड़ी की ऊँचाई 1365 मीटर / 4478 फीट है।
  • निचली हजारीबाग के पठार, छोटानागपुर क्षेत्र से बाहर स्थित है।  इसी कारण से इसे “बाह्य पठार” भी कहा जाता है।

राँची का पठार –

  • झारखण्ड का सबसे बड़ा पठारी भाग राँची का पठार है।
  • राँची के पठार की ऊँचाई 600 मीटर / 1970 फीट है।
  • राँची के पठार की आकृति चौकोर है।
  • राँची के पठारी क्षेत्र में ढाल होने के कारण यहाँ से निकलने वाली नदियाँ जलप्रपातों का निर्माण करती है।
  • इस क्षेत्र के प्रमुख जलप्रपात – बुढ़ाघाघ जलप्रपात, हुंडरू जलप्रपात, दशम फॉल, गौतमधारा जलप्रपात।
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Jharkhand ka Bhugol की प्रमुख नदियाँ –

झारखण्ड का भूगोल में एक महत्वपूर्ण भाग झारखण्ड की प्रमुख नदियों का है। झारखण्ड की प्रमुख नदियाँ हमें झारखण्ड के जल संसाधन के बारे में बताती हैं।

  • झारखण्ड में उपलब्ध कुल जल संसाधन में 86% जल सतही जल के रूप में मौजूद है तथा 14% जल भूमिगत जल के रूप में मौजूद है।
  • झारखण्ड राज्य में उपलब्ध जल संसाधन की मात्रा 30,169 मिलियन घनमीटर है।
  • इस 30,169 मिलियन घनमीटर जल संसाधन में 25,877 मिलियन घनमीटर जल (86%) सतही जल के रूप में मौजूद है तथा 4,292 मिलियन घनमीटर जल (14%) भूमिगत जल के रूप में मौजूद है।
  • झारखण्ड राज्य का 1.59 लाख हेक्टेयर क्षेत्र जलीय स्रोतों से परिपूर्ण है, यह क्षेत्र झारखण्ड के कुल भूभाग का लगभग 2 % प्रतिशत है।
  • झारखण्ड क्षेत्र का अधिकांश भाग आर्कियनकालीन चट्टानों से निर्मित होने के कारण यहाँ की मिट्टी में छिद्रता ना के बराबर है जिसके कारण जल का रिसाव बहुत कम होता है तथा पठारी क्षेत्र होने के कारण वर्षा का जल तेजी से प्रवाहित हो जाता है। यही कारण है की यहाँ भूमिगत जल की मात्रा काफी कम है।
  • झारखण्ड राज्य की नदियों के प्रवाह की दिशा को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है – 1) उत्तरवर्ती  2) पूर्ववर्ती / दक्षिणवर्ती
  • पूर्ववर्ती / दक्षिणवर्ती नदियाँ झारखण्ड के दक्षिणी भाग से प्रवाहित होती है।
  • झारखण्ड की पूर्ववर्ती / दक्षिणवर्ती नदियाँ – दक्षिणी कोयल नदी, दामोदर नदी, अजय नदी, स्वर्णरेखा नदी, बांसलोई नदी, रोरो नदी, मयूराक्षी नदी, तजना नदी, गुमानी नदी, बराकर नदी, ब्राह्मणी नदी, शंख नदी, काँची नदी।
  • उत्तरवर्ती नदियाँ झारखण्ड के उत्तरी भाग से प्रवाहित होती हुई गंगा या उसकी सहायक नदी से मिल जाती है।
  • झारखण्ड की उत्तरवर्ती नदियाँ – उत्तरी कोयल नदी, सोन नदी, पुनपुन नदी, चानन नदी, अमानत नदी, सकरी नदी, औरंगा नदी, फाल्गु नदी, बूढ़ा नदी इत्यादि।

Jharkhand ka bhugol प्रमुख नदियाँ निम्न प्रकार से हैं –

दामोदर नदी –

  • दामोदर नदी की कुल लम्बाई – 592 किमी. तथा झारखण्ड राज्य में दामोदर नदी की लम्बाई – 290 किमी. है। 
  • दामोदर नदी का अपवाह क्षेत्र – 12,800 वर्ग किमी.
  • दामोदर नदी की सहायक नदियाँ – बोकारो, भेड़ा, बराकर, कतरी, कोनार, जमुनिया
  • दामोदर नदी झारखण्ड की सबसे लम्बी और बड़ी नदी है।
  • दामोदर नदी रांची तथा हजारीबाग पठार के बीच दामोदर नदी द्रोणी का निर्माण करती है।
  • करमाली जनजाति दामोदर नदी को सबसे पवित्र नदी मानते हैं।
  • दामोदर नदी का उद्गम स्थल – टोरी, छोटानागपुर पठार तथा मुहाना – हुगली नदी है।
  • चिरकुंडा के पास दामोदर नदी से बरकार नदी आकर मिलती है।
  • दामोदर नदी के धनबाद जिले में प्रवेश करते समय जमुनिया नदी आकर इससे मिलती है।
  • दामोदर नदी झारखण्ड की सबसे प्रदूषित नदी है।

स्वर्णरेखा नदी –

  • स्वर्णरेखा नदी का उद्गम स्थल – नगड़ी (छोटानागपुर पठार, राँची) तथा मुहाना – बंगाल की खाड़ी है।
  • स्वर्णरेखा नदी झारखण्ड की एकमात्र नदी है जो बंगाल की खाड़ी में स्वतंत्र रूप से गिरती है।
  • स्वर्णरेखा नदी की कुल लम्बाई – 470 किमी.
  • स्वर्णरेखा नदी राँची में हुंडरू जलप्रपात का निर्माण करती है।
  • स्वर्णरेखा नदी की सहायक राढू नदी जोन्हा नामक स्थान पर जोन्हा/गौतमधारा जलप्रपात का निर्माण करती है।
  • स्वर्णरेखा नदी की सहायक काँची नदी दशम जलप्रपात का निर्माण करती है।
  • स्वर्णरेखा नदी की सहायक नदियाँ – काँची, खरकई, संजय नदी, काकरो नदी, राढू नदी, जुमारु नदी
  • स्वर्णरेखा नदी का अपवाह क्षेत्र – जमशेदपुर, राँची, सिंहभूम क्षेत्र
  • स्वर्णरेखा नदी झारखण्ड से होकर उड़ीसा में प्रवेश कर जाती है।

सोन नदी –

  • सोन नदी की कुल लम्बाई – 784 किमी. तथा अपवाह क्षेत्र – 9030 वर्ग किमी. है।
  • सोन नदी का अपवाह क्षेत्र – पलामू एवं गढ़वा
  • सोन नदी झारखण्ड के उत्तर-पश्चिमी भाग सीमा से होकर बहती है।
  • सोन नदी का उद्गम स्थल – मैकाल पर्वत की अमरकंटक पहाड़ी तथा मुहाना – गंगा नदी है।
  • सोन नदी झारखण्ड की एकमात्र नदी है जो बरसाती नदी नहीं है।
  • सोन नदी के आलावा झारखण्ड की सभी नदियां बरसाती नदी है जो बरसात के दिनों में उफान में बहती है मगर गर्मी के दिनों में प्रायः सुख जाती है।
  • सोन नदी का उपनाम – सोनभद्र, हिरण्यवाह
  • सोन नदी की सहायक नदी – उत्तरी कोयल
  • सोन नदी का उद्गम स्थल – मैकाल पर्वत की अमरकंटक पहाड़ी तथा मुहाना – गंगा नदी है।

बराकर नदी –

  • बराकर नदी का उद्गम स्थल – पद्मा तथा मुहाना – दामोदर नदी है।
  • बराकर नदी की लम्बाई – 225 किमी.
  • बराकर नदी का अपवाह क्षेत्र – हज़ारीबाग, धनबाद, गिरिडीह
  • बराकर नदी का उल्लेख जैन तथा बौद्ध साहित्यों में मिलता है।

पुनपुन नदी –

  • पुनपुन नदी का उद्गम स्थल – पलामू  तथा मुहाना – गंगा नदी है।
  • पुनपुन नदी की कुल लम्बाई – 200 किमी.
  • पुनपुन नदी की सहायक नदियाँ – दारधा तथा मोरहर।
  • पुनपुन नदी का अपवाह क्षेत्र – चतरा, गया, औरंगाबाद, पटना।
  • पुनपुन नदी का उपनाम – बमागधी, कीकट

मयूराक्षी नदी –

  • मयूराक्षी नदी का उद्गम स्थल – त्रिकुट पहाड़ी (देवघर) तथा मुहाना – हुगली है।
  • मयूराक्षी नदी की कुल लम्बाई – 250 किमी.
  • मयूराक्षी नदी का उपनाम – मोर नदी, मोतिहारी
  • मयूराक्षी नदी की सहायक नदियाँ – टिपरा, भामरी, पुसरो, धोवाई
  • मयूराक्षी नदी झारखण्ड की एकमात्र नदी है जो नाव चलाने के लिए उपयुक्त है।
  • मयूराक्षी नदी को मोर नदी भी कहा जाता है।
  • झारखण्ड राज्य का अधिकांश भाग कठोर चट्टानों से निर्मित होने के कारण यहाँ की नदियों में नाव चलाना लगभग नामुमकिन हो जाता है।

ब्राह्मणी नदी –

  • ब्राह्मणी नदी का उद्गम स्थल – दुधवा पहाड़ी तथा मुहाना – हुगली है। 
  • ब्राह्मणी नदी की कुल लम्बाई – 480 किमी.
  • ब्राह्मणी नदी की सहायक नदियाँ – एरो, गुमरो
  • ब्राह्मणी नदी का अपवाह क्षेत्र – देवघर, साहेबगंज, गोड्डा, देवघर

अजय नदी –

  • अजय नदी का उद्गम स्थल – मुंगेर तथा मुहाना – भागीरथी है।
  • अजय नदी की कुल लम्बाई – 288 किमी.
  • अजय नदी की सहायक नदियाँ – पथरो, जयंती
  • अजय नदी का अपवाह क्षेत्र – दुमका, जामताड़ा, देवघर

सकरी नदी –

  • सकरी नदी का उपनाम सुमागधी है।
  • सकरी नदी मार्ग बदलने के लिए प्रसिद्ध है।
  • सकरी नदी का उद्गम स्थल – उत्तरी छोटानागपुर का पठार तथा मुहाना – गंगा नदी है।
  • सकरी नदी की सहायक नदियाँ – किउल तथा मोरहर

औरंगा नदी –

  • औरंगा नदी का उद्गम स्थल – किस्को (लोहरदगा) तथा मुहाना – उत्तरी कोयल है।
  • औरंगा नदी का अपवाह क्षेत्र – लातेहार, पलामू, लोहरदगा
  • औरंगा नदी की सहायक नदियाँ – नाला, धधारी, घाघरी, गोवा, सुकरी

उत्तरी कोयल नदी –

  • उत्तरी कोयल नदी का उद्गम स्थल – रांची पठार का मध्य भाग तथा मुहाना – सोन नदी है।
  • उत्तरी कोयल नदी का अपवाह क्षेत्र – गढ़वा, पलामू , लातेहार
  • उत्तरी कोयल नदी की सहायक नदियाँ – औरंगा नदी, बूढ़ा नदी, अमानत नदी

दक्षिण कोयल नदी –

  • दक्षिण कोयल नदी का उद्गम स्थल – नगड़ी (राँची) तथा मुहाना – शंख नदी है।
  • दक्षिण कोयल नदी की कुल लम्बाई – 470 किमी.
  • दक्षिण कोयल नदी की सहायक नदियाँ – बरसोती, कारो, उसरी

फल्गु नदी –

  • फल्गु नदी का उद्गम स्थल – छोटानागपुर पठार का उत्तरी भाग तथा मुहाना – पुनपुन नदी है।
  • फल्गु नदी की सहायक नदी – निरंजना तथा मोहना
  • फल्गु नदी का उपनाम – अन्तः सलिला

गुमानी नदी –

  • गुमानी नदी का उद्गम स्थल – राजमहल की पहाड़ी तथा मुहाना – गंगा नदी है।
  • गुमानी नदी की सहायक नदियाँ – मेरेल
  • गुमानी नदी का अपवाह क्षेत्र – साहेबगंज, गोड्डा

शंख नदी –

  • शंख नदी का उद्गम स्थल – चैनपुर तथा मुहाना – दक्षिणी कोयल नदी है।
  • शंख नदी की कुल लम्बाई – 240 किमी.
  • शंख नदी का अपवाह क्षेत्र – गुमला

रोरो नदी –

  • रोरो नदी का उद्गम स्थल – चाईबासा तथा मुहाना – कारो नदी है।
  • रोरो नदी का अपवाह क्षेत्र – पश्चिमी सिंहभूम
  • रोरो नदी के किनारे चाईबासा शहर बसा हुआ है।

चानन नदी –

  • चानन नदी का उद्गम स्थल – छोटानागपुर का पठार तथा मुहाना – सकरी नदी है।
  • चानन नदी का का उपनाम – पंचानन / पंचाने

बूढ़ा नदी –

  • बूढ़ा नदी का उद्गम स्थल – महुआडांड़ तथा मुहाना – उत्तरी कोयल है।
  • बूढ़ा नदी का अपवाह क्षेत्र – लातेहार

अमानत नदी –

  • अमानत नदी का उद्गम स्थल – चतरा तथा मुहाना – उत्तरी कोयल है।
  • अमानत नदी के अपवाह क्षेत्र – लातेहार, चतरा, पलामू

तजना नदी –

  • तजना नदी का उद्गम स्थल – बुंडू-तमाड़ (राँची) तथा मुहाना – कारो नदी है।
  • तजना नदी का अपवाह क्षेत्र – राँची, खूंटी

काँची नदी –

  • काँची नदी का उद्गम स्थल – तमाड़ (राँची) तथा मुहाना – स्वर्णरेखा नदी (मूरी) है।
  • काँची नदी का अपवाह क्षेत्र – खूंटी, राँची
  • बांसलोई नदी का उद्गम स्थल – बाँस पहाड़ी (गोड्डा) तथा मुहाना – गंगा नदी है।
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Jharkhand ka Bhugol की मिट्टियाँ –

झारखण्ड का भूगोल में एक महत्वपूर्ण भाग झारखण्ड की मिट्टियों का है। झारखण्ड की मिट्टियाँ हमें झारखण्ड के विभिन्न प्रकार के मिट्टियों के बारे में बताती हैं।

झारखण्ड की मिट्टियाँ चट्टानों के अपक्षयन तथा उनमें खनिजों के मिश्रण से बनी है यह मिट्टी अवशिष्ट मिट्टी कहलाती है, इसलिए झारखण्ड में अवशिष्ट मिट्टियाँ पाई जाती है।झारखण्ड में 6 प्रकार की मिट्टी पाई जाती है – काली मिट्टी, लाल मिट्टी, जलोढ़ मिट्टी, रेतीली मिट्टी, अभ्रकमूलक मिट्टी, लैटेराइट मिट्टी।

लाल मिट्टी –

  • झारखण्ड के छोटानागपुर पठार का निर्माण मुख्य रूप से लाल मिट्टी से हुआ है।
  • लाल मिट्टी झारखण्ड के छोटानागपुर क्षेत्र के लगभग 90 % हिस्से में पाई जाती है।
  • राजमहल उच्च भूमि तथा दामोदर घाटी के गोंडवाना क्षेत्र के अलावा पुरे छोटानागपुर क्षेत्र में लाल मिट्टी पाई जाती है।
  • लाल मिट्टी झारखण्ड की सर्वप्रमुख मिट्टी है।
  • लाल मिट्टी में “फेरिक ऑक्साइड” तथा “बॉक्साइट” की अधिकता के कारण इसका रंग लाल होता है।
  • लाल मिट्टी नीस तथा ग्रेनाइट चट्टान के अपक्षयन से बानी है।
  • लाल मिट्टी में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और ह्यूमस की कमी होने के कारण इसकी उर्वरकता क्षमता कम होती है।
  • लाल मिट्टी बाजरा, रागी, गन्ना, ज्वार, मूंगफली की खेती के लिए अत्यंत उपयुक्त मानी जाती है।

लैटेराइट मिट्टी –

  • झारखण्ड में लैटेराइट मिट्टी का विस्तार क्षेत्र – संथाल परगना, पूर्वी राजमहल क्षेत्र, सिंहभूम का ढालभूम क्षेत्र, पलामू का दक्षिणी क्षेत्र, रांची का पश्चिमी क्षेत्र।
  • झारखण्ड में पाई जाने वाली मिट्टी में कंकड़ की अधिकता लैटेराइट मिट्टी में पाई जाती है।
  • इसका रंग गहरा लाल होता है।
  • लैटेराइट मिट्टी में लौह ऑक्साइड की अधिकता पाई जाती है।
  • झारखण्ड में लैटेराइट मिट्टी में मुख्यतः चावल तथा मोटे अनाज की खेती की जाती है।

काली मिट्टी –

  • झारखण्ड के राजमहल पहाड़ी क्षेत्र में काली मिट्टी का विस्तार पाया जाता है।
  • काली मिट्टी को ‘रेगुर मिट्टी’ के नाम से भी जाना जाता है।
  • काली मिट्टी का निर्माण अत्यंत बारीक कणों से होने के कारण वर्षा के मौसम में यह चिपचिपी हो जाती है।
  • राजमहल क्षेत्र की काली मिट्टी में मैग्नीशियम, लौह, एलुमिना और चुना का मिश्रण पाया जाता है।
  • राजमहल क्षेत्र की काली मिट्टी में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और ह्यूमस की कमी पाई जाती है।
  • बेसाल्ट चट्टान के अपक्षयन से बनी काली मिट्टी ‘कपास’ की खेती के लिए अत्यंत उपयोगी मानी जाती है मगर राजमहल क्षेत्र में काली मिट्टी में धान तथा चने की खेती की जाती है।

अभ्रकमूलक मिट्टी –

  • झारखण्ड में अभ्रकमूलक मिट्टी का विस्तार झुमरी तिलैया, बड़कागाँव, कोडरमा, तथा मांडू क्षेत्र में पाया जाता है।
  • झारखण्ड में अभ्रकमूलक मिट्टी का विस्तार झुमरी तिलैया, बड़कागाँव, कोडरमा, तथा मांडू क्षेत्र में पाए जाने के कारण इस क्षेत्र को अभ्रक पट्टी के नाम से जाना जाता है।
  • अभ्रकमूलक मिट्टी अभ्रक के खानों के पास पाया जाता है।
  • अभ्रकमूलक मिट्टी का रंग हल्का गुलाबी होता है।
  • अभ्रकमूलक मिट्टी बहुत उपजाऊ होती है परन्तु इस क्षेत्र में पानी कम पाया जाता है जिसके कारण कृषि कार्य यहाँ बहुत मुश्किल है।

जलोढ़ मिट्टी –

  • झारखण्ड में जलोढ़ मिट्टी का विस्तार संथाल परगना क्षेत्र में पाया जाता है।
  • झारखण्ड में पायी जाने वाली नवीनतम मिट्टी जलोढ़ मिट्टी है।
  • झारखण्ड राज्य में दो प्रकार की जलोढ़ मिट्टी पाई जाती है – खादर (नवीन जलोढ़) तथा भांगर (पुराना जलोढ़)
  • भांगर (पुराना जलोढ़) झारखण्ड राज्य के साहेबगंज क्षेत्र के उत्तर तथा उत्तर पश्चिमी भाग में पाया जाता है।
  • खादर (नवीन जलोढ़) झारखण्ड राज्य के पूर्वी भाग तथा पाकुड़ जिले में पाया जाता है।
  • जलोढ़ मिट्टी में चुना तथा पोटाश की अधिकता पाई जाती है तथा नाइट्रोजन और ह्यूमस की कमी पाई जाती है।
  • जलोढ़ मिट्टी धान तथा गेहूं की खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है।

रेतीली मिट्टी –

  • झारखण्ड में रेतीली मिट्टी का विस्तार पूर्वी हजारीबाग तथा धनबाद क्षेत्र में पाया जाता है।
  • झारखण्ड में रेतीली मिट्टी में मोटे अनाज की खेती की जाती है।

Jharkhand ka bhugol में पाई जाने वाली अन्य गौड़ मिट्टियाँ –

अपरदित कगारों की मिट्टी –

  • झारखण्ड में अपरदित कगारों की मिट्टी का विस्तार तीव्र ढालयुक्त क्षेत्र में पाया जाता है।
  • झारखण्ड में अपरदित कगारों की मिट्टी पथरीली तथा पतली होती है।
  • झारखण्ड में अपरदित कगारों की मिट्टी कम उपजाऊ होती है।
  • झारखण्ड में अपरदित कगारों की मिट्टी में मक्का, कुर्थी तथा सुरगुजा उपजाया जाता है।

धात्विक गुणों से युक्त मिट्टी –

  • झारखण्ड में धात्विक गुणों से युक्त मिट्टी का विस्तार पश्चिमी सिंहभूम के दक्षिणी भाग में पाया जाता है।
  • इस क्षेत्र में फैले इस मिट्टी का रंग लाल होता है।
  • इस मिट्टी की उर्वरक क्षमता कम होती है।

विषमजातीय मिट्टी –

  • झारखण्ड में विषमजातीय मिट्टी का विस्तार पश्चिमी सिंहभूम के मध्य तथा उत्तरी भाग में पाया जाता है।
  • झारखण्ड में विषमजातीय मिट्टी का निर्माण विभिन्न प्रकार के चट्टानों के अपरदन तथा उनके मिश्रण के कारण हुआ है।
  • विषमजातीय मिट्टी का रंग उच्च भूमि में पीला तथा निम्न भूमि में कला होता है।
  • विषमजातीय मिट्टी की उर्वरकता मध्यम स्तर की होती है।

उच्च भूमि की धूसर-पीली मिट्टी –

  • झारखण्ड में उच्च भूमि की धूसर-पीली मिट्टी का विस्तार पलामू तथा गढ़वा के ऊँचे पठारी क्षेत्र में पाया जाता है।
  • झारखण्ड में उच्च भूमि की धूसर-पीली मिट्टी की उर्वरकता मध्यम होती है।

झारखण्ड की मिट्टियों के स्थानीय नाम –

  • झारखण्ड में चिकनी मिट्टी का स्थानीय नाम – गोबरा, केवाल, नगरा, हासा, चीटा, हलमाद।
  • झारखण्ड में दोमट मिट्टी का स्थानीय नाम – बालसुंदर, खेरसी, लोबो, चरका, आराहासा।
  • झारखण्ड में बलुई दोमट मिट्टी का स्थानीय नाम – जारिया, बाला, गिटालहासा, गोरिस।
  • ऊँची भूमि को टांड़ कहा जाता है।
  • झारखण्ड में ऊँची भूमि (टांड़) का स्थानीय नाम – भीठा, दिहार, बारी, बहारसी।
  • नीची भूमि को दोन कहा जाता है।
  • झारखण्ड में नीची भूमि (दोन) का स्थानीय नाम – घोघरा, गहड़ा, कनारी, चौउरा, बहियार, जाह।
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Jharkhand ka Bhugol की कृषि एवं फसल –

झारखण्ड का भूगोल में एक महत्वपूर्ण भाग झारखण्ड की कृषि एवं फसल का है। झारखण्ड की कृषि एवं फसल हमें झारखण्ड के विभिन्न कृषि कार्य के बारे में बताती हैं।

  • झारखण्ड की कुल भूमि के 23% भाग पर कृषि कार्य होता है।
  • झारखण्ड में स्थानीय कृषि को खल्लु कृषि कहते हैं।
  • झारखण्ड की 38 लाख हेक्टेयर भूमि पर कृषि कार्य संभव है।
  • झारखण्ड के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल के 47.69% भाग पर कृषि कार्य संभव है।
  • मगर 23% भाग पर ही कृषि कार्य होता है।
  • झारखण्ड की तीन मुख्य फसल है – धान, मक्का तथा गेहूं।
  • झारखण्ड की सर्वप्रमुख फसल धान है।
  • झारखण्ड की दूसरी प्रमुख फसल मक्का है।
  • झारखण्ड में सिंचाई का सर्वप्रमुख स्रोत कुआँ है।
  • यहाँ की कृषि वर्षा पर आधारित हैं क्योंकि यहाँ सिंचाई करने के साधनों की बहुत कमी है।
  • यहाँ के खेतों के उबड़-खाबड़, बंजर जमीन तथा खेत के जोतों का अकार छोटा होने के कारण यहाँ उन्नत तकनीकों का प्रयोग संभव नहीं हो पाया है।
  • झारखण्ड में लगभग 17.38% भाग में परती भूमि पाईं जाती है।
  • झारखण्ड में मात्र 1.17 हेक्टेयर प्रति व्यक्ति ही जोतों का औसत आकार है।
  • झारखण्ड में कुल बोये गए क्षेत्र के 78% हिस्से पर खरीफ फसल की खेती होती है।
  • राष्ट्रीय बागवानी मिशन से झारखण्ड के 17 जिले जुड़े हुए हैं।
  • झारखण्ड में “मेस्टा” का उत्पादन किया जाता है जो जूट की तरह ही रेशेदार फसल का प्रकार है।

Jharkhand ka bhugol के कृषि प्रदेश –

झारखण्ड में कृषि प्रदेश को कुल 8 भागों में बांटा गया है। झारखण्ड में कृषि प्रदेश – उत्तरी कोयल घाटी के कृषि प्रदेश, दामोदर घाटी के कृषि प्रदेश, निचली स्वर्णरेखा घाटी के कृषि प्रदेश, हजारीबाग पठार के कृषि प्रदेश, राजमहल पहाड़ी व सीमावर्ती क्षेत्रों के कृषि प्रदेश , राँची पठार के कृषि प्रदेश, चाईबासा मैदान व समीपवर्ती उच्च भूमि के कृषि प्रदेश, उत्तरी-पूर्वी सीमांत के कृषि प्रदेश।

उत्तरी कोयल घाटी के कृषि प्रदेश –

  • उत्तरी कोयल घाटी के कृषि प्रदेश से सम्बंधित जिलें – चतरा, पलामू , लातेहार, गढ़वा
  • उत्तरी कोयल घाटी के कृषि प्रदेश की प्रमुख फसल धान है।

दामोदर घाटी के कृषि प्रदेश –

  • दामोदर घाटी के कृषि प्रदेश से सम्बंधित जिलें – दक्षिणी हजारीबाग, बोकारो, धनबाद, पूर्वी लातेहार, दक्षिणी चतरा, मक्का, धान, दलहन, तिलहन दामोदर घाटी के कृषि प्रदेश की प्रमुख फसलें हैं।
  • दामोदर घाटी के कृषि प्रदेश के क्षेत्र में गोंडवाना क्रम के चट्टानों की प्रधानता है।

हजारीबाग पठार के कृषि प्रदेश –

  • हजारीबाग पठार के कृषि प्रदेश से सम्बंधित जिलें – हजारीबाग, गिरिडीह, कोडरमा,चतरा
  • हजारीबाग पठार के कृषि प्रदेश में मुख्यतः मक्का, रागी, धान की खेती की जाती है।

राजमहल पहाड़ी व सीमावर्ती क्षेत्रों के कृषि प्रदेश –

  • राजमहल पहाड़ी व सीमावर्ती क्षेत्रों के कृषि प्रदेश से सम्बंधित जिलें – दक्षिणी साहेबगंज, दक्षिणी पाकुड़, दुमका, देवघर, जामताड़ा, गोड्डा
  • राजमहल पहाड़ी व सीमावर्ती क्षेत्रों के कृषि प्रदेश की प्रमुख फसल धान है।
  • राजमहल पहाड़ी व सीमावर्ती क्षेत्रों के कृषि प्रदेश की औसतन वर्षा 100-130 सेमी. होती है।

राँची पठार के कृषि प्रदेश –

  • राँची पठार के कृषि प्रदेश से सम्बंधित जिलें – गुमला, सिमडेगा, पूर्वी लोहरदगा, राँची
  • राँची पठार के कृषि प्रदेश की दोन भूमि में धान की खेती की जाती है।
  • राँची पठार के कृषि प्रदेश की टांड़ भूमि में रागी, दलहन, तिलहन तथा फल की खेती की जाती है।
  • राँची पठार के कृषि प्रदेश में औसतन वर्षा 120-130 सेमी. होती है।

चाईबासा मैदान व समीपवर्ती उच्च भूमि के कृषि प्रदेश –

  • चाईबासा मैदान व समीपवर्ती उच्च भूमि के कृषि प्रदेश झारखण्ड में धात्विक गुणों से युक्त कृषि प्रदेश है।
  • चाईबासा मैदान व समीपवर्ती उच्च भूमि के कृषि प्रदेश में औसतन वर्षा 100-140 सेमी. होती है।
  • चाईबासा मैदान व समीपवर्ती उच्च भूमि के कृषि प्रदेश में मुख्यतः मक्का, धान तथा चना की खेती की जाती है।

उत्तरी-पूर्वी सीमांत के कृषि प्रदेश –

  • कृषि की दृष्टि से झारखण्ड का एकमात्र विकसित कृषि प्रदेश उत्तरी-पूर्वी सीमांत के कृषि प्रदेश है।
  • इस क्षेत्र से सम्बंधित जिलें – साहेबगंज का उत्तरी-पूर्वी भाग, उत्तरी गोड्डा
  • उत्तरी-पूर्वी सीमांत के कृषि प्रदेश की औसतन वर्षा 140-160 सेमी. है।
  • यहाँ मक्का, धान गेहूँ, दलहन तथा चना की खेती की जाती है।

Jharkhand ka bhugol के फसल –

झारखण्ड के उगाये जाने वाले दो प्रमुख फसल खरीफ फसल तथा रबी फसल है। झारखण्ड में खाद्य सुरक्षा हेतु कुल भण्डारण क्षमता 5.51 लाख मीट्रिक टन है। झारखण्ड में खाद्य सुरक्षा हेतु कोल्ड स्टोरेज की भण्डारण क्षमता 2 लाख मीट्रिक टन है। 

झारखण्ड की सर्वप्रमुख फसल धान है। पश्चिमी सिंहभूम झारखण्ड में धान के उत्पादन की दृष्टि से प्रथम जिला है। पश्चिमी झारखण्ड को छोड़कर झारखण्ड के लगभग सभी हिस्सों में धान की खेती की जाती है।

झारखण्ड की दूसरी सर्वप्रमुख फसल मक्का है। झारखण्ड में मक्का के उत्पादन की दृष्टि से प्रथम जिला पलामू है। झारखण्ड में कुल बोये हुए क्षेत्र के 6% भाग पर मक्का उगाया जाता है।

खरीफ फसल –

  • खरीफ फसल की बुआई जून-जुलाई में की जाती है, मानसून के आगमन के समय। 
  • खरीफ फसल की कटाई सितम्बर-अक्टूबर की जाती है, मानसून के समाप्ति के समय।
  • खरीफ फसल को बरसाती फसल भी कहा जाता है।
  • प्रमुख खरीफ फसल – मूंग, बाजरा, ज्वार, गन्ना, धान, मक्का, मूंगफली इत्यादि।
  • भदई और अगहनी के रूप में खरीफ फसल झारखण्ड में दो भागों में बंटी हुई है।
  • भदई फसल की बुआई वैशाख-जेठ (मई-जून) में की जाती है तथा कटाई भादो (अगस्त-सितम्बर) में की जाती है।
  • अगहनी फसल की बुआई जेठ-आषाढ़ (जून) में की जाती है तथा कटाई अगहन (दिसंबर) में की जाती है।
  • राज्य के हजारीबाग जिले में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की स्थापना प्रस्तावित है।
  • यह संस्थान भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् द्वारा बनाया जाएगा।
  • झारखण्ड में कृषि योग्य भूमि के 15% प्रतिशत क्षेत्र पर सिंचाई सुविधा उपलब्ध है।
  • यहाँ की कृषि वर्षा पर आधारित हैं क्योंकि यहाँ सिंचाई करने के साधनों की बहुत कमी है।
  • यहाँ के खेतों के उबड़-खाबड़, बंजर जमीन तथा खेत के जोतों का अकार छोटा होने के कारण यहाँ उन्नत तकनीकों का प्रयोग संभव नहीं हो पाया है।
  • राज्य में खरीफ फसल की खेती के कुल क्षेत्रफल के लगभग 84% क्षेत्र पर धान की खेती की जाती है।
  • राज्य में खरीफ फसल की खेती के कुल क्षेत्रफल के लगभग 14% क्षेत्र पर मक्के की खेती की जाती है।
  • भदई फसल की बुआई वैशाख-जेठ (मई-जून) में की जाती है तथा कटाई भादो (अगस्त-सितम्बर) में की जाती है।
  • अगहनी फसल की बुआई जेठ-आषाढ़ (जून) में की जाती है तथा कटाई अगहन (दिसंबर) में की जाती है।
  • अगहनी फसल भदई फसल की तुलना में ज्यादा क्षेत्रफल में उगाई जाती है।
  • प्रमुख खरीफ फसलें – धान, बाजरा, मूंग, मक्का, ज्वार, मूंगफली, गन्ना

रबी फसल –

  • रबी फसल ठन्डे मौसम का फसल या वैशाखी फसल भी कहते हैं।
  • रबी फसल की बुआई अक्टूबर-नवंबर में की जाती हैं।
  • रबी फसल की कटाई मार्च में की जाती हैं।
  • प्रमुख रबी फसलें – गेहूँ, तिलहन, जौ, चना
  • झारखण्ड में लगभग 16% क्षेत्र में रबी फसल की खेती की जाती है।
  • रबी फसल की खेती सिंचाई साधनों से परिपूर्ण स्थान जिसे बाड़ी भी कहा जाता है में की जाती है।
  • यहाँ की कृषि वर्षा पर आधारित हैं क्योंकि यहाँ सिंचाई करने के साधनों की बहुत कमी है।
  • यहाँ के खेतों के उबड़-खाबड़, बंजर जमीन तथा खेत के जोतों का अकार छोटा होने के कारण यहाँ उन्नत तकनीकों का प्रयोग संभव नहीं हो पाया है।
  • राज्य में कुल रबी फसलों की कृषि योग्य भूमि में से लगभग 90% क्षेत्र पर गेहूँ तथा चना की खेती की जाती है।
  • राज्य के कुल कृषिगत भूमि के 0.17% भाग पर ही जायद फसल की खेती की जाती है।

झारखण्ड के फसलों से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण तथ्य –

  • झारखण्ड में गेहूँ के उत्पादन की दृष्टि से प्रथम जिला पलामू है।
  • झारखण्ड की तीसरी सर्वप्रमुख फसल गेहूँ है।
  • झारखण्ड में कुल बोये हुए क्षेत्र के 4% प्रतिशत भाग पर गेहूँ उगाया जाता है।
  • झारखण्ड की प्रमुख नकदी फसल गन्ना है।
  • झारखण्ड में गन्ना के उत्पादन की दृष्टि से प्रथम जिला हजारीबाग है।
  • झारखण्ड में सरसों के उत्पादन की दृष्टि से प्रथम जिला पलामू है।
  • उत्तरी कोयल घाटी की प्रमुख फसल धान है।
  • झारखण्ड में जौ के उत्पादन की दृष्टि से प्रथम जिला पलामू है।
  • झारखण्ड में ज्वार-बाजरा के उत्पादन की दृष्टि से प्रथम जिला हजारीबाग है।
  • झारखण्ड में दलहन के उत्पादन की दृष्टि से प्रथम जिला पलामू है।
  • झारखण्ड में चना के उत्पादन की दृष्टि से प्रथम जिला गोड्डा है।
  • चना राजमहल की पहाड़ी पर काली मिट्टी में उगाई जाती है।
  • झारखण्ड में मटर के उत्पादन की दृष्टि से प्रथम जिला राँची है।
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Jharkhand ka Bhugol की जलवायु –

झारखण्ड का भूगोल में एक महत्वपूर्ण भाग झारखण्ड की जलवायु का है। झारखण्ड की जलवायु हमें झारखण्ड के विभिन्न जलवायु प्रदेश के बारे में बताती हैं।

झारखण्ड एक उष्णकटिबंधीय प्रदेश है। यहाँ उष्णकटिबंधीय मानसूनी प्रकार की जलवायु का विकास हुआ है क्यूंकि यहाँ मानसूनी हवाओं का प्रत्यक्ष प्रभाव रहता है। झारखण्ड का औसत तापमान 25°C है। झारखण्ड में मुख्यतः 3 प्रकार के मौसम “ग्रीष्म ऋतु, वर्षा ऋतु तथा शीत ऋतु” पाए जाते हैं।

ग्रीष्म ऋतु –

  • मई झारखण्ड में सबसे अधिक गर्मी वाला महीना है।
  • मार्च महीने से तापमान में वृद्धि के साथ गर्मी के मौसम का प्रारम्भ होता है।
  • गर्मी के मौसम में झारखण्ड का औसत तापमान 29°C से 45°C के बिच रहता है।
  • यहाँ गर्मी के मौसम में “लू” का प्रकोप ना के बराबर होता है जिसका कारण यहाँ का पठारी भाग होना है।
  • झारखण्ड राज्य का सबसे गर्म स्थान जमशेदपुर है।
  • ग्रीष्म ऋतु में जमशेदपुर का अधिकतम तापमान 45°C जाता है।
  • ग्रीष्म ऋतु में झारखण्ड के पठार के उत्तर-पूर्वी भाग में निम्न वायु दाब उत्पन्न होने के कारण वातावरण शांत रहता है।

वर्षा ऋतु –

  • यहाँ मई महीने में नार्वेस्टर के प्रभाव से तड़ित झंझायुक्त वर्षा होती है।
  • इसे आम्र वर्षा भी कहते हैं।
  • झारखण्ड में वर्षा ऋतु जून के मध्य में प्रारम्भ होता है।
  • झारखण्ड में मुख्यतः दक्षिण-पश्चिम मानसून पवनों के द्वारा वर्षा होती है।
  • यहाँ बंगाल की खाड़ी शाखा तथा अरब सागर की शाखा द्वारा वर्षा होती है।
  • झारखण्ड में बंगाल की खाड़ी शाखा द्वारा अपेक्षाकृत अधिक वर्षा होती है।
  • झारखण्ड के मध्यवर्ती तथा पश्चिमी भाग में बंगाल की खाड़ी शाखा तथा अरब सागर की शाखा दोनों शाखाओं के द्वारा वर्षा होती है।
  • झारखण्ड के पूर्वी भाग में मुख्य रूप से बंगाल की खाड़ी की शाखा द्वारा वर्षा होती है।
  • झारखण्ड में “दक्षिण से उत्तर की ओर तथा पूरब से पश्चिम की ओर” जाने पर वर्षा की मात्रा में कमी आती है।
  • झारखण्ड में निचले स्थानों की अपेक्षा ऊंचाई वाले स्थानों पर अधिक वर्षा होती है।
  • झारखण्ड में कुल वर्षा का 80% जल वर्षा ऋतु में बरसता है।
  • झारखण्ड में औसत वार्षिक वर्षा 140 सेमी. होती है।
  • झारखण्ड मध्यम वर्षा वाला प्रदेश है।
  • झारखण्ड में वार्षिक वर्षा का अंतराल 100 से 200 सेमी. के बीच रहता है।
  • झारखण्ड में सर्वाधिक वर्षा वाला स्थान नेतरहाट का पठार है।
  • नेतरहाट के पठार में 180 सेमी. से अधिक वर्षा होती है।
  • झारखण्ड में सबसे कम वर्षा वाला स्थान चाईबासा का मैदानी भाग है।
  • झारखण्ड में सबसे ज्यादा वर्षा वाला जिला हजारीबाग है।

शीत ऋतु –

  • झारखण्ड में शीत ऋतू की शुरुआत नवंबर महीने में हो जाती है तथा फरवरी महीने तक रहती है।
  • झारखण्ड पठारी क्षेत्र होने के कारण यहाँ मैदानी इलाकों की तुलना में अधिक ठण्ड पड़ती है।
  • शीत ऋतू में झारखण्ड राज्य का तापमान 15°C से 21°C तक रहता है।
  • इस समय पश्चिमी विक्षोभ के कारण वर्षा होती है जो रबी फसल के लिए लाभदायक होती है।
  • झारखण्ड का सर्वाधिक ठंडा महीना जनवरी है।
  • झारखण्ड का सर्वाधिक ठंडा स्थान नेतरहाट है।
  • शीत ऋतु में झारखण्ड का न्यूनतम तापमान 7°C होता है।

Jharkhand ka bhugol की जलवायु के प्रकार –

सामान्यतः झारखण्ड के जलवायु प्रदेश को 7 भागों में बांटा गया है। झारखण्ड के 7 जलवायु प्रदेश – महाद्वीपीय प्रकार, उपमहाद्वीपीय प्रकार, डेल्टा प्रकार, सागर प्रभावित प्रकार, आर्द्र वर्षा प्रकार, तीव्र एवं सुखद प्रकार, शीत वर्षा प्रकार।

महाद्वीपीय प्रकार –

  • झारखण्ड जलवायु प्रदेश में ‘महाद्वीपीय प्रकार’ से प्रभावित क्षेत्र झारखण्ड का उत्तरी एवं उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्र है।
    झारखण्ड का उत्तरी एवं उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्र – चतरा, हजारीबाग, पलामू, गढ़वा, देवघर, गोड्डा, उत्तरी दुमका, गिरिडीह का मध्यवर्ती भाग।
    झारखण्ड जलवायु प्रदेश में ‘महाद्वीपीय प्रकार’ से प्रभावित क्षेत्र में औसत वार्षिक वर्षा 114 सेमी. से 127 सेमी. तक होती है।
    झारखण्ड जलवायु प्रदेश के “महाद्वीपीय प्रकार” क्षेत्र की विशेषता “ठंड के मौसम में अत्यधिक ठंड तथा गर्मी के मौसम में अत्यधिक गर्म” होना है।

उपमहाद्वीपीय प्रकार –

  • झारखण्ड जलवायु प्रदेश में ‘उपमहाद्वीपीय प्रकार’ से प्रभावित क्षेत्र “झारखण्ड का मध्यवर्ती क्षेत्र” है।
  • झारखण्ड का मध्यवर्ती क्षेत्र – धनबाद, बोकारो, जामताड़ा, दक्षिणी-पश्चिमी दुमका, पूर्वी लातेहार, दक्षिणी चतरा, दक्षिणी हजारीबाग
  • झारखण्ड जलवायु प्रदेश में ‘उपमहाद्वीपीय प्रकार’ से प्रभावित क्षेत्र में औसत वार्षिक वर्षा 127 सेमी. से 165 सेमी. होती है।
  • झारखण्ड जलवायु प्रदेश के “उपमहाद्वीपीय प्रकार” क्षेत्र की विशेषता “तापमान में अपेक्षाकृत कमी तथा वर्षा में अपेक्षाकृत अधिकता” होना है।
  • इस कारण इसे एक विशेष प्रकार की उपमहाद्वीपीय प्रकार की जलवायु का दर्जा दिया गया है।

डेल्टा प्रकार –

  • झारखण्ड जलवायु प्रदेश में ‘डेल्टा प्रकार’ से प्रभावित क्षेत्र “पूर्वी संथाल परगना क्षेत्र” है।
  • पूर्वी संथाल परगना क्षेत्र – साहेबगंज तथा पाकुड़
  • झारखण्ड जलवायु प्रदेश में ‘डेल्टा प्रकार’ से प्रभावित क्षेत्र में औसत वार्षिक वर्षा 152 सेमी. होती है।
  • झारखण्ड जलवायु प्रदेश के “डेल्टा प्रकार” क्षेत्र की विशेषता “पश्चिम बंगाल के नार्वेस्टर क्षेत्र के समान जलवायु” होना है।

सागर प्रभावित प्रकार –

  • झारखण्ड जलवायु प्रदेश में ‘सागर प्रभावित प्रकार’ से प्रभावित क्षेत्र “पूर्वी सिंहभूम क्षेत्र” है।
  • पूर्वी सिंहभूम क्षेत्र – सरायकेला-खरसावां, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम का पूर्वी भाग
  • झारखण्ड जलवायु प्रदेश में ‘सागर प्रभावित प्रकार’ से प्रभावित क्षेत्र में औसत वार्षिक वर्षा 140 सेमी. से 152 सेमी. होती है।
  • झारखण्ड जलवायु प्रदेश के “सागर प्रभावित प्रकार” क्षेत्र की विशेषता “मानसून से पहले तड़ित झंझा, ग्रीष्म काल में सर्वाधिक वर्षा” होना है।
  • यहाँ नार्वेस्टर से प्रभावित मौसमी घटनाएँ घटती हैं।
  • इस क्षेत्र में मानसून से पहले तड़ित झंझा सामान्यतः होता है।
  • यह जलवायु प्रकार ग्रीष्म काल में सर्वाधिक वर्षा करवाती है।

आर्द्र वर्षा प्रकार –

  • झारखण्ड जलवायु प्रदेश में ‘आर्द्र वर्षा प्रकार’ से प्रभावित क्षेत्र “पश्चिमी सिंहभूम का पश्चिमी क्षेत्र” है।
  • पश्चिमी सिंहभूम का पश्चिमी क्षेत्र – सिमडेगा तथा पश्चिमी सिंहभूम के मध्य तथा पश्चिमी क्षेत्र।
  • झारखण्ड जलवायु प्रदेश में ‘आर्द्र वर्षा प्रकार’ से प्रभावित क्षेत्र में औसत वार्षिक वर्षा 152 सेमी. से अधिक होती है।
  • झारखण्ड जलवायु प्रदेश के “आर्द्र वर्षा प्रकार” क्षेत्र की विशेषता “मानसून की दोनों शाखाओं बंगाल की खाड़ी की शाखा तथा अरब सागर की शाखा द्वारा वर्षा” होना है।
  • तीव्र एवं सुखद प्रकार –
  • झारखण्ड जलवायु प्रदेश में ‘तीव्र एवं सुखद प्रकार’ से प्रभावित क्षेत्र “राँची-हजारीबाग का पठारी क्षेत्र” है।
  • राँची-हजारीबाग का पठारी क्षेत्र – राँची तथा हजारीबाग
  • ऐसी जलवायु झारखण्ड के अन्य क्षेत्र में नहीं पायी जाती।
  • झारखण्ड जलवायु प्रदेश में ‘तीव्र एवं सुखद प्रकार’ से प्रभावित क्षेत्र में औसत वार्षिक वर्षा 148 सेमी. से अधिक होती है।
  • झारखण्ड जलवायु प्रदेश में ‘तीव्र एवं सुखद प्रकार’ से प्रभावित क्षेत्र “पाट क्षेत्र” है।
  • पाट क्षेत्र – लोहरदगा तथा गुमला

शीत वर्षा प्रकार –

  • झारखण्ड जलवायु प्रदेश में ‘शीत वर्षा प्रकार’ से प्रभावित क्षेत्र में औसत वार्षिक वर्षा 203 सेमी. से अधिक होती है।
  • झारखण्ड जलवायु प्रदेश के “शीत वर्षा प्रकार” क्षेत्र की विशेषता “सर्वाधिक वर्षा, ग्रीष्म ऋतू में ठंडा मौसम, शीत ऋतू में भी वर्षा” होना है।
  • इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा वर्षा होती है तथा शीत ऋतू में भी वर्षा होती है।
  • इस क्षेत्र में बादल का निर्माण ज्यादा होने के कारण अधिक वर्षा होती है, गर्मी के मौसम में भी इस क्षेत्र का वातावरण ठंडा रहता है, ठण्ड के मौसम में यहाँ की ठण्ड और भी बढ़ जाती है जिससे इस क्षेत्र का तापमान freezing point से भी निचे चला जाता है।

झारखण्ड की जलवायु राष्ट्रिय आपदा प्रबंधन संस्थान (NIDM) के अनुसार –

राष्ट्रिय आपदा प्रबंधन संस्थान (NIDM) के अनुसार झारखण्ड राज्य को 3 कृषि जलवायु प्रदेशों में बांटा जा सकता है।
कृषि जलवायु प्रदेश – मध्य व उत्तर-पूर्वी पठार, पश्चिमी पठार तथा दक्षिणी-पूर्वी पठार

मध्य व उत्तर-पूर्वी पठार –

मध्य व उत्तर-पूर्वी पठार के जलवायु प्रदेश से संबंधित जिले – चतरा, हजारीबाग, देवघर, पाकुड़, गोड्डा, कोडरमा, रामगढ़, गिरिडीह, जामताड़ा, साहेबगंज, बोकारो, राँची, धनबाद, दुमका
इस जलवायु प्रदेश की विशेषता –

  • औसत वर्षा – 140 सेमी. से 152 सेमी.
  • वर्षा में असमानता
  • मानसून का देर से आना जल्दी चले जाना

पश्चिमी पठार –

पश्चिमी पठार के जलवायु प्रदेश से संबंधित जिले – लातेहार, पलामू, गढ़वा, गुमला, सिमडेगा, खूँटी, लोहरदगा
इस जलवायु प्रदेश की विशेषता –

  • औसत वर्षा
  • झारखण्ड में सबसे ऊंचाई पर स्थित जलवायु क्षेत्र
  • वर्षा में असमानता
  • पाट क्षेत्र में अधिक वर्षा

दक्षिणी-पूर्वी पठार –

दक्षिणी-पूर्वी पठार के जलवायु प्रदेश से संबंधित जिले – पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम तथा सरायकेला-खरसावां
इस जलवायु प्रदेश की विशेषता –

  • औसत वर्षा – 142 सेमी. से 155 सेमी.
  • वर्षा में असमानता
  • पूर्वी भाग में अधिक वर्षा
  • जलवायु के सागर से प्रभावित होने के कारण आद्रता अधिक
Science Objective Question

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Jharkhand ka Bhugol की सिंचाई प्रणाली –

झारखण्ड का भूगोल में एक महत्वपूर्ण भाग झारखण्ड की सिंचाई प्रणाली का है। झारखण्ड की सिंचाई प्रणाली हमें झारखण्ड के सिंचित भाग के बारे में बताती हैं।

  • झारखण्ड के कुल फसली भूमि का 15% प्रतिशत भाग सिंचित है।
  • राज्य के देवघर जिले में पुनासी जलाशय परियोजना पूर्ण हुई है।
  • पुनासी नहर की लम्बाई 72 किमी. है।
  • झारखण्ड की कुल सिंचित भूमि का 58% भाग सतही जल द्वारा सिंचित होता है।
  • झारखण्ड की कुल सिंचित भूमि का 42% प्रतिशत भाग भूमिगत जल द्वारा सिंचित होता है।
  • झारखण्ड में सिंचाई की सर्वाधिक आवश्यकता वाले जिले – दुमका, गुमला, गोड्डा, साहेबगंज
  • झारखण्ड में सिंचाई की न्यूनतम आवश्यकता वाले जिले – धनबाद, चतरा, पूर्वी सिंहभूम, बोकारो
  • झारखण्ड में सिंचाई का परंपरागत साधन कुआँ है।
  • झारखण्ड के कुल सिंचित क्षेत्र में कुआँ द्वारा सिंचाई का योगदान लगभग 30% है।
  • कुआँ द्वारा सिंचाई झारखण्ड के गुमला जिले में सर्वाधिक होती है।
  • गुमला जिला के कुल सिंचित भूमि के 87% भाग पर कुआँ द्वारा सिंचाई होती है।
  • झारखण्ड के कुल सिंचित क्षेत्र में तालाब द्वारा सिंचाई का योगदान लगभग 19% है।
  • तालाब सिंचाई का सबसे पुराना साधन है।
  • तालाब द्वारा सिंचाई झारखण्ड के देवघर जिले में सर्वाधिक होती है।
  • देवघर जिला के कुल सिंचित भूमि के 49% प्रतिशत भाग पर तालाब द्वारा सिंचाई होती है।
  • झारखण्ड के कुल सिंचित क्षेत्र में नहर द्वारा सिंचाई का योगदान लगभग 18% है।
  • यह सिंचाई का आधुनिक साधन है।
  • नहर द्वारा सिंचाई झारखण्ड के सिंहभूम एवं सरायकेला-खरसावाँ जिले में सर्वाधिक होती है।
  • झारखण्ड के कुल सिंचित क्षेत्र में नलकूप द्वारा सिंचाई का योगदान लगभग 8% है।
  • नलकूप द्वारा सिंचाई झारखण्ड के लोहरदगा जिले में सर्वाधिक होती है।
  • लोहरदगा जिला के कुल सिंचित भूमि के 32% भाग पर नलकूप द्वारा सिंचाई होती है।
  • झारखण्ड की संरचना पत्थरों से परिपूर्ण होने के कारण यहाँ भूमिगत जल का स्टार बहुत निचे पाया जाता है, इस कारण यहाँ नलकूप से सिंचाई करना बहुत मुश्किल का काम है।

Jharkhand ka bhugol की सिंचाई परियोजना –

झारखण्ड का भूगोल में एक महत्वपूर्ण भाग झारखण्ड की सिंचाई परियोजना का है। झारखण्ड की सिंचाई परियोजना हमें झारखण्ड के बहुद्देशीय सिंचाई परियोजना के बारे में बताती हैं।

वृहद् सिंचाई परियोजना वह परियोजना कहलाती है जिसकी सिंचाई व्यवस्था 10,000 हेक्टेयर क्षेत्र से अधिक में फैली हो। मध्यम सिंचाई परियोजना वह परियोजना कहलाती है जिसकी सिंचाई व्यवस्था 2,000 से 10,000 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली हो। लघु सिंचाई परियोजना वह परियोजना कहलाती है जिसकी सिंचाई व्यवस्था 2,000 हेक्टेयर क्षेत्र से कम में फैली हो। झारखण्ड में संचालित मध्यम सिंचाई परियोजना की संख्या 600 से भी ज्यादा है।

झारखण्ड सिंचाई परियोजना के महत्वपूर्ण तथ्य –

  • स्वर्णरेखा बहुद्देशीय परियोजना से लाभान्वित जिले – सरायकेला-खरसावाँ, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम
  • स्वर्णरेखा बहुद्देशीय परियोजना में सम्मिलित योजनाएँ – चांडिल बांध तथा मुख्य नहर, ईचा बांध तथा मुख्य नहर, गालुडीह बराज तथा मुख्य नहर, खरकई-बराज तथा मुख्य नहर
  • स्वर्णरेखा बहुद्देशीय परियोजना का प्रारंभ पांचवीं पंचवर्षीय योजना में हुआ था।
  • अजय बराज परियोजना से लाभान्वित जिला जामताड़ा तथा देवघर है।
  • अजय बराज परियोजना का प्रारंभ पांचवीं पंचवर्षीय योजना में हुआ था।
  • गुमानी जलाशय परियोजना से लाभान्वित जिला पाकुड़ और साहेबगंज है।
  • पुनासी जलाशय परियोजना से लाभान्वित जिला देवघर है।
  • पुनासी जलाशय परियोजना का प्रारंभ सातवीं पंचवर्षीय योजना में हुआ था।
  • कोनार जलाशय परियोजना से लाभान्वित जिला गिरिडीह है।
  • कोनार जलाशय परियोजना का प्रारंभ पांचवीं पंचवर्षीय योजना में हुआ था।
  • अमानत बराज परियोजना से लाभान्वित जिला पलामू है।
  • अमानत बराज परियोजना का प्रारंभ दसवीं पंचवर्षीय योजना में हुआ था।
  • उत्तरी कोयल जलाशय परियोजना से लाभान्वित जिला पलामू है।
  • उत्तरी कोयल जलाशय परियोजना का प्रारंभ पांचवीं पंचवर्षीय योजना में हुआ था।
  • औरंगा जलाशय परियोजना से लाभान्वित जिला पलामू है।
  • औरंगा जलाशय परियोजना का प्रारंभ सातवीं पंचवर्षीय योजना में हुआ था।
  • कांची वृहत परियोजना से लाभान्वित जिला राँची है।
  • मयूराक्षी बयान जलाशय परियोजना से लाभान्वित जिला दुमका है।
  • कंस जलाशय परियोजना से लाभान्वित जिला राँची है।
  • कोकरो सिंचाई योजना से लाभान्वित जिला राँची है।
  • कांटी जलाशय योजना से लाभान्वित जिला राँची है।
  • रैसा जलाशय योजना से लाभान्वित जिला राँची है।
  • वासुकी सिंचाई सह जलापूर्ति परियोजना से लाभान्वित जिला राँची है।
  • पतरातू जलाशय परियोजना से लाभान्वित जिला राँची है।
  • लतरातू जलाशय परियोजना से लाभान्वित जिला राँची है।
  • सुरंगी जलाशय परियोजना से लाभान्वित जिला राँची है।
  • तजना जलाशय योजना से लाभान्वित जिला खूँटी है।
  • कतरी जलाशय योजना से लाभान्वित जिला गुमला है।
  • धनसिंगटोली जलाशय परियोजना से लाभान्वित जिला गुमला है।
  • अपर शंख जलाशय परियोजना से लाभान्वित जिला गुमला है।
  • पारस जलाशय परियोजना से लाभान्वित जिला गुमला है।
  • सुआली जलाशय योजना से लाभान्वित जिला गुमला है।
  • तपकरा जलाशय परियोजना से लाभान्वित जिला गुमला तथा सिमडेगा है।
  • रामरेखा जलाशय परियोजना से लाभान्वित जिला गुमला तथा सिमडेगा है।
  • कसजोर जलाशय परियोजना से लाभान्वित जिला सिमडेगा है।
  • सुकरी जलाशय योजना से लाभान्वित जिला लोहरदगा है।
  • नंदिनी जलाशय परियोजना से लाभान्वित जिला लोहरदगा है।
  • सलइया जलाशय परियोजना से लाभान्वित जिला हजारीबाग है।
  • भैरवा जलाशय परियोजना से लाभान्वित जिला हजारीबाग तथा रामगढ़ है।
  • पंचखेरो जलाशय परियोजना से लाभान्वित जिला हजारीबाग तथा कोडरमा है।
  • बक्सा जलाशय परियोजना से लाभान्वित जिला हजारीबाग तथा चतरा है।
  • केशो जलाशय परियोजना से लाभान्वित जिला कोडरमा है।
  • गरही जलाशय परियोजना से लाभान्वित जिला चतरा है।
  • खुदिया जलाशय परियोजना से लाभान्वित जिला धनबाद है।
  • गोबई जलाशय परियोजना से लाभान्वित जिला धनबाद है।
  • बटाने जलाशय परियोजना से लाभान्वित जिला पलामू है।
  • सदाबाह जलाशय परियोजना से लाभान्वित जिला पलामू है।
  • चाको जलाशय परियोजना से लाभान्वित जिला पलामू है।
  • जिंजोरी जलाशय परियोजना से लाभान्वित जिला पलामू है।
  • सोनारे जलाशय परियोजना से लाभान्वित जिला पलामू है।
  • मलय जलाशय परियोजना से लाभान्वित जिला पलामू है।
  • अनराज जलाशय परियोजना से लाभान्वित जिला गढ़वा है।
  • बाँया बांकी सिंचाई परियोजना से लाभान्वित जिला गढ़वा है।
  • झरझरा जलाशय परियोजना से लाभान्वित जिला पश्चिमी सिंहभूम है।
  • सोनुआ जलाशय परियोजना से लाभान्वित जिला पश्चिमी सिंहभूम है।
  • सतपोटका जलाशय परियोजना से लाभान्वित जिला पश्चिमी सिंहभूम है।
  • नकटी जलाशय परियोजना से लाभान्वित जिला पश्चिमी सिंहभूम है।
  • तोरलो जलाशय परियोजना से लाभान्वित जिला पश्चिमी सिंहभूम है।
  • मुराहीर जलाशय परियोजना से लाभान्वित जिला पश्चिमी सिंहभूम है।
  • ब्राह्मणी जलाशय परियोजना से लाभान्वित जिला पूर्वी सिंहभूम है।
  • रोरो जलाशय परियोजना से लाभान्वित जिला पूर्वी सिंहभूम तथा सरायकेला है।
  • जेनसाई जलाशय परियोजना से लाभान्वित जिला पूर्वी सिंहभूम तथा सरायकेला है।
  • सुरु जलाशय परियोजना से लाभान्वित जिला सरायकेला-खरसावाँ है।
  • सोना जलाशय परियोजना से लाभान्वित जिला सरायकेला-खरसावाँ है।
  • पालना जलाशय परियोजना से लाभान्वित जिला सरायकेला-खरसावाँ है।
  • सकरी गली पंप योजना से लाभान्वित जिला साहेबगंज है।
  • तोरई बराज परियोजना से लाभान्वित जिला गोड्डा है।
  • सुन्दर जलाशय परियोजना से लाभान्वित जिला गोड्डा है।
  • हरना वियर परियोजना से लाभान्वित जिला गोड्डा है।
  • काझिया वियर परियोजना से लाभान्वित जिला गोड्डा है।
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Jharkhand ka Bhugol के जलप्रपात –

झारखण्ड का भूगोल में एक महत्वपूर्ण भाग झारखण्ड के जलप्रपात का है। झारखण्ड के जलप्रपात हमें झारखण्ड के विभिन्न जलप्रपात के बारे में बताती हैं।

झारखण्ड के जलप्रपात बहुत आकर्षक होते हैं, प्रकृति प्रेमियों के लिए स्वर्ग के समान है। झारखण्ड की घाटियां, जलप्रपात, जलकुंड, पहाड़ियां, वनस्पति की सुंदरता हम झारखण्ड वासियों को अपनी ओर आकर्षित करती है। आज हम झारखण्ड के जलप्रपात के बारे में जानेंगे। झारखण्ड के मुख्य जलप्रपात निम्नलिखित हैं –

  • बूढ़ाघाघ/लोधाघाघ जलप्रपात
  • हुण्डरू जलप्रपात
  • लोध जलप्रपात
  • गौतमघाघ जलप्रपात
  • सतबहिनी जलप्रपात
  • जोन्हा/गौतमधारा जलप्रपात
  • दशम/दसोंग जलप्रपात
  • सदनी/सदनीघाघ जलप्रपात
  • प्रेमाघाघ जलप्रपात

झारखण्ड के जलप्रपात के महत्वपूर्ण तथ्य –

  • बूढ़ाघाघ/लोधाघाघ जलप्रपात झारखण्ड के लातेहार जिले में स्थित है।
  • यह झारखण्ड का सबसे ऊँचा जलप्रपात है।
  • बूढ़ाघाघ/लोधाघाघ जलप्रपात की 137 मीटर या 450 फीट है।
  • बूढ़ाघाघ/लोधाघाघ जलप्रपात उत्तरी कोयल नदी पर स्थित है।
  • हुण्डरू जलप्रपात झारखण्ड के राँची जिले में स्थित है।
  • हुण्डरू जलप्रपात झारखण्ड का दूसरा सबसे ऊँचा जलप्रपात है।
  • हुण्डरू जलप्रपात की ऊँचाई 98 मीटर या 321 फीट है।
  • हुण्डरू जलप्रपात स्वर्णरेखा नदी पर स्थित है।
  • सदनी/सदनीघाघ जलप्रपात झारखण्ड के गुमला जिले में स्थित है।
  • सदनी/सदनीघाघ जलप्रपात का आकार सर्पाकार है।
  • सदनी/सदनीघाघ जलप्रपात शंख नदी पर स्थित है।
  • सदनी/सदनीघाघ जलप्रपात की ऊँचाई 60 मीटर या 200 फीट है।
  • जोन्हा/गौतमधारा जलप्रपात झारखण्ड के राँची जिले में स्थित है।
  • जोन्हा/गौतमधारा जलप्रपात राढू नदी पर स्थित है।
  • जोन्हा/गौतमधारा जलप्रपात की ऊँचाई 17 मीटर या 56 फीट है।
  • घाघरी जलप्रपात झारखण्ड के लातेहार जिले में स्थित है।
  • घाघरी जलप्रपात नेतरहाट में घाघरी नदी पर स्थित है।
  • घाघरी जलप्रपात की ऊँचाई 43 मीटर या 140 फीट है।
  • दशम/दसोंग जलप्रपात झारखण्ड के राँची जिले में स्थित है।
  • दशम/दसोंग जलप्रपात काँची नदी पर स्थित है।
  • दशम/दसोंग जलप्रपात की ऊँचाई 40 मीटर या 130 फीट है।
  • हेपाद जलप्रपात झारखण्ड के गुमला जिले में स्थित है।
  • हेपाद जलप्रपात घाघरा नदी पर स्थित है।
  • हेपाद जलप्रपात घाघरा नदी के उद्गम स्थल पर स्थित है।
  • रजरप्पा जलप्रपात झारखण्ड के रामगढ़ जिले में स्थित है।
  • रजरप्पा जलप्रपात दामोदर और भैरवी नदी पर स्थित है।
  • दामोदर नदी एवं भैरवी नदी के संगम पर स्थित है।
  • लोध जलप्रपात झारखण्ड के लातेहार जिले में स्थित है।
  • लोध जलप्रपात बूढ़ा नदी पर स्थित है।
  • नागफेनी जलप्रपात झारखण्ड के गुमला जिले में स्थित है।
  • नागफेनी जलप्रपात शंख नदी पर स्थित है।
  • गौतमघाघ जलप्रपात झारखण्ड के लातेहार जिले में स्थित है।
  • गौतमघाघ जलप्रपात की ऊँचाई 36 मीटर या 120 फीट है।
  • हिरनी जलप्रपात झारखण्ड के पश्चिमी सिंहभूम जिले में स्थित है।
  • हिरनी जलप्रपात गरहा नदी पर स्थित है।
  • घरघरिया जलप्रपात झारखण्ड के लोहरदगा जिले में स्थित है।
  • घरघरिया जलप्रपात पाट क्षेत्र के तलहटी में स्थित है।
  • सुगाकाटाघाघ जलप्रपात झारखण्ड के सिमडेगा जिले में स्थित है।
  • सुगाकाटाघाघ जलप्रपात शंख नदी पर स्थित है।
  • मुनीडीह/मटिंडा जलप्रपात झारखण्ड के धनबाद जिले में स्थित है।
  • मुनीडीह/मटिंडा जलप्रपात के पास मुनीडीह की खान स्थित है।
  • मोतीझरा जलप्रपात अजय नदी पर स्थित है।
  • मोतीझरा जलप्रपात राजमहल पहाड़ी क्षेत्र में अजय नदी पर स्थित है।
  • उसरी जलप्रपात झारखण्ड के गिरिडीह जिले में स्थित है।
  • यह उसरी नदी पर खण्डोली पहाड़ पर स्थित है।
  • मिरचईया जलप्रपात झारखण्ड के लातेहार जिले में स्थित है।
  • गुरसिन्धु जलप्रपात झारखण्ड के गढ़वा जिले में स्थित है।
  • बलचौरा जलप्रपात झारखण्ड के गढ़वा जिले में स्थित है।
  • सुखलदरी जलप्रपात झारखण्ड के गढ़वा जिले में स्थित है।
  • गंगाझांझ जलप्रपात झारखण्ड के गढ़वा जिले में स्थित है।
  • सतबहिनी जलप्रपात झारखण्ड के गढ़वा जिले में स्थित है।
  • हेसातु जलप्रपात झारखण्ड के गढ़वा जिले में स्थित है।
  • सोनुआ जलप्रपात झारखण्ड के राँची जिले में स्थित है।
  • सीता जलप्रपात झारखण्ड के राँची जिले में स्थित है।
  • कांति जलप्रपात झारखण्ड के लातेहार जिले में स्थित है।
  • तिरु जलप्रपात झारखण्ड के राँची जिले में स्थित है।
  • पंगुरा जलप्रपात झारखण्ड के राँची जिले में स्थित है।
  • प्रेमाघाघ जलप्रपात झारखण्ड के गुमला जिले में स्थित है।
  • कुंड जलप्रपात झारखण्ड के पलामू जिले में स्थित है।
  • सेरका जलप्रपात झारखण्ड के गुमला जिले में स्थित है।
  • गोआ जलप्रपात झारखण्ड के चतरा जिले में स्थित है।
  • तमासीर जलप्रपात झारखण्ड के चतरा जिले में स्थित है।
  • मालूदह जलप्रपात झारखण्ड के चतरा जिले में स्थित है।
  • डुमेर-सुमेर जलप्रपात झारखण्ड के चतरा जिले में स्थित है।
  • केरीदह जलप्रपात झारखण्ड के चतरा जिले में स्थित है।
  • गरहा नदी को रामगरहा नदी भी कहते हैं।
  • थाकोरा जलप्रपात झारखण्ड के पश्चिमी सिंहभूम जिले में स्थित है।
  • लुपुंगटु जलप्रपात झारखण्ड के पश्चिमी सिंहभूम जिले में स्थित है।
  • निंदी जलप्रपात झारखण्ड के लोहरदगा जिले में स्थित है।
  • केलाघाघ जलप्रपात झारखण्ड के सिमडेगा जिले में स्थित है।
  • सूरजकुंड जलप्रपात झारखण्ड के हजारीबाग जिले में स्थित है।
  • बोकारो जलप्रपात झारखण्ड के हजारीबाग जिले में स्थित है।
  • पंचघाघ जलप्रपात झारखण्ड के खूंटी जिले में स्थित है।
  • सतवागन जलप्रपात झारखण्ड के कोडरमा जिले में स्थित है।
  • धारागिरी जलप्रपात झारखण्ड के पूर्वी सिंहभूम जिले में स्थित है।
  • मोतीझरा जलप्रपात झारखण्ड के साहेबगंज जिले में स्थित है।

Jharkhand ka Bhugol के गर्म जलकुंड –

झारखण्ड का भूगोल में एक महत्वपूर्ण भाग झारखंड के गर्म जलकुंड का है। झारखंड के गर्म जलकुंड हमें झारखण्ड के विभिन्न जलकुंड के बारे में बताते हैं।

  • हरहद जलकुंड झारखण्ड के हजारीबाग जिले में स्थित है।
  • टाइगर प्रपात जलकुंड झारखण्ड के हजारीबाग जिले में स्थित है।
  • टाइगर प्रपात जलकुंड बराकर नदी पर स्थित है।
  • कावा जलकुंड झारखण्ड के हजारीबाग जिले में स्थित है।
  • सूरजकुंड जलकुंड झारखण्ड के हजारीबाग जिले में स्थित है।
  • यह देश का सबसे गर्म जलकुंड है।
  • इस जलकुंड का तापमान 88°C या 190°F है।
  • रानी बहल जलकुंड झारखण्ड के दुमका जिले में स्थित है।
  • रानी बहल जलकुंड मयूराक्षी नदी या मोर नदी के तट पर स्थित है।
  • झुमका/भुमका जलकुंड झारखण्ड के दुमका जिले में स्थित है।
  • यह रानीबहाल के पास मयूराक्षी नदी या मोर नदी पर स्थित है।
  • तपातपानी जलकुंड झारखण्ड के दुमका जिले में स्थित है।
  • यह कुमराबाद में मयूराक्षी नदी या मोर नदी पर स्थित है।
  • झरियापानी जलकुंड झारखण्ड के दुमका जिले में स्थित है।
  • झरियापानी जलकुंड गोपीकांदर के समीप स्थित है।
  • ततलोई जलकुंड झारखण्ड के किस जिले में स्थित है।
  • ततलोई जलकुंड प्लासी के समीप भुरभुरी नदी के तट पर स्थित है।
  • बाराझरना जलकुंड झारखण्ड के दुमका जिले में स्थित है।
  • बाराझरना जलकुंड बारा गाँव के पास स्थित है।
  • नुनबिल जलकुंड झारखण्ड के दुमका जिले में स्थित है।
  • नुनबिल जलकुंड केनालगुटा के समीप स्थित है।
  • शिवपुर सोता जलकुंड झारखण्ड के पाकुड़ जिले में स्थित है।
  • शिवपुर सोता जलकुंड शिवपुर गाँव में स्थित है।
  • बारामसिया जलकुंड झारखण्ड के पाकुड़ जिले में स्थित है।
  • बारामसिया जलकुंड झारखण्ड के महेशपुर प्रखंड में स्थित है।
  • लाडलाउदइ जलकुंड झारखण्ड के पाकुड़ जिले में स्थित है।
  • लाडलाउदइ जलकुंड बोरु नदी के तट के समीप स्थित है।
  • तेतुलिया जलकुंड झारखण्ड के धनबाद जिले में स्थित है।
  • तेतुलिया जलकुंड दामोदर नदी के तट पर स्थित है।
  • सुसुमपानी जलकुंड झारखण्ड के धनबाद जिले में स्थित है।
  • सुसुमपानी जलकुंड मयूराक्षी नदी या मोर नदी के तट पर स्थित है।
  • सुसुमपानी जलकुंड झारखण्ड के बाघमारा प्रखंड में स्थित है।
  • तातापानी जलकुंड झारखण्ड के लातेहार जिले में स्थित है।
  • तातापानी जलकुंड झारखण्ड के बरवाडीह प्रखंड में स्थित है।
  • दुआरी जलकुंड झारखण्ड के चतरा जिले में स्थित है।

Jharkhand ka Bhugol MCQ (झारखण्ड का भूगोल)

झारखंड का भौगोलिक विस्तार कितना है?

झारखण्ड राज्य का भौगोलिक विस्तार उत्तरी अक्षांश और पूर्वी देशांतर के मध्य है। झारखण्ड राज्य का भौगोलिक विस्तार उत्तरी अक्षांश के मध्य 21°58’10” से 25°19’15” है तथा झारखण्ड राज्य का भौगोलिक विस्तार पूर्वी देशांतर के मध्य 83°19’50”  से 87°57′ है।

भारत का कौन सा राज्य झारखण्ड के एकमात्र जिले को स्पर्श करती है ?

उत्तर प्रदेश
झारखण्ड राज्य कुल 5 राज्यों की सीमाओं को स्पर्श करती है – पूर्व में पश्चिम बंगाल की सीमा को, पश्चिम में छत्तीसगढ़ की सीमा को, उत्तर में बिहार की सीमा को, दक्षिण में उड़ीसा की सीमा को, तथा पश्चिमोत्तर में उत्तर प्रदेश की सीमा को स्पर्श करती है।

कर्क रेखा झारखण्ड के किन किन जिलों से हो कर गुजरती है ?

झारखण्ड के मध्य से कर्क रेखा गुजरती है, यह रामगढ़ (गोला), लातेहार (नेतरहाट), गुमला, रांची (कांके तथा ओरमांझी), तथा लोहरदगा (किस्को) से होकर गुजरती है।

झारखण्ड में स्थित धारवाड़ क्रम की चट्टान को क्या कहते हैं ?

धारवाड़ क्रम की चट्टान को “लौह अयस्क की श्रृंखला” भी कहा जाता है क्योंकि धारवाड़ क्रम की चट्टानों में लौह अयस्क प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।

छोटानागपुर पठार की सबसे ऊँची चोटी का नाम क्या है ?

छोटानागपुर पठार की सबसे ऊँची चोटी पारसनाथ पहाड़ी है। पारसनाथ पहाड़ी को सम्मेद शिखर भी कहा जाता है। पारसनाथ पहाड़ी की ऊंचाई 1365 मीटर तथा 4478 फीट है। पारसनाथ पहाड़ी झारखण्ड की सबसे ऊँची चोटी है।

पाट क्षेत्र का आकार कैसा है ?

पाट क्षेत्र की आकृति त्रिभुजाकार है। झारखण्ड का सबसे ऊँचा भाग पाट क्षेत्र है। पाट क्षेत्र का विस्तार राँची के उत्तर-पश्चिमी हिस्से से लेकर पलामू जिले के दक्षिणी हिस्से तक है। पाट का अर्थ समतल जमीन होता है।पाट क्षेत्र का शीर्ष – दक्षिण तथा आधार – उत्तर की ओर है। पाट क्षेत्र का ऊपरी भाग टांड कहलाता है। पाट क्षेत्र का निचला भाग दोन कहलाता है। नेतरहाट पाट सबसे ऊँचा पाट है जिसकी ऊंचाई 1180 मीटर / 3871 फीट है। गणेशपुर पाट की ऊंचाई 1171 मीटर है। जनीरा पाट की ऊंचाई 1142 मीटर है।

राजमहल की पहाड़ियाँ तथा मैदानी क्षेत्र का सबसे महत्वपूर्ण मैदानी क्षेत्र कौन सा है ?

राजमहल की पहाड़ियाँ तथा मैदानी क्षेत्र का सबसे महत्वपूर्ण मैदानी क्षेत्र “चाईबासा का मैदान” है। चाईबासा का मैदान पूर्व में ढालभूम की श्रेणी से घिरा हुआ है, पश्चिम में सारंडा के वन से घिरा हुआ है, उत्तर में दलमा की श्रेणी से घिरा हुआ है, दक्षिण में कोल्हान की पहाड़ी से घिरा हुआ है, तथा पश्चिमोत्तर में पोरहाट की पहाड़ी से घिरा हुआ है। चाईबासा के मैदान के दक्षिण में अजय नदी घाटी स्थित है।

झारखण्ड की उत्तरवर्ती नदियाँ कौन कौन सी हैं ?

झारखण्ड की उत्तरवर्ती नदियाँ – उत्तरी कोयल नदी, सोन नदी, पुनपुन नदी, चानन नदी, अमानत नदी, सकरी नदी, औरंगा नदी, फाल्गु नदी, बूढ़ा नदी इत्यादि।

झारखण्ड में कृषि प्रदेश को कुल कितने भागों में बांटा गया है ?

झारखण्ड में कृषि प्रदेश को कुल 8 भागों में बांटा गया है। झारखण्ड में कृषि प्रदेश – उत्तरी कोयल घाटी के कृषि प्रदेश, दामोदर घाटी के कृषि प्रदेश, निचली स्वर्णरेखा घाटी के कृषि प्रदेश, हजारीबाग पठार के कृषि प्रदेश, राजमहल पहाड़ी व सीमावर्ती क्षेत्रों के कृषि प्रदेश , राँची पठार के कृषि प्रदेश, चाईबासा मैदान व समीपवर्ती उच्च भूमि के कृषि प्रदेश, उत्तरी-पूर्वी सीमांत के कृषि प्रदेश।

धन्यवाद !

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